Skip to main content

तव पद रज उड़त ज्यों - तृषित

तव पद रज उड़त ज्यों , त्यों प्राणन प्राण उड़ जावें ।
कछु लागे भाल , कुभाग भाल अंक हट जावें ।
कछु लागे मुख तब , और कछु राग न रह जावें ।
कछु लागे हिय ते पदरज सुगन्धी , हित बसत पिय उछल जावें ।
लागे अंग-अंग जब तब उन्मादिनी सखी नृत्य ठौर कहाँ पावें ।

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...