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नहीँ दीखता तुम्हे न सुनते हो -- सलोनी जी


नहीं दिखता तुम्हें
न सुनते हो तुम
न कोई चाह
न कोई तलब ही
न उत्कण्ठा
न पीड़ा
न कोई तृषा ही
तुम तो हो पूरक खुद के
न चाहिए तुम्हें कोई पूर्णा कभी

मत देखो यहां
कहाँ कोई अधूरी चाहत तुम्हारी दम तोड़ रही
मत सुनो तुम आवाज़
किसी के बेज़ुबान हृदय के टूटने की
न मत सुनो

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