Skip to main content

अनोखा अभिनय यह संसार

अनोखा अभिनय यह संसार
रंगमंच पर होता नित नटवर-इच्छित व्यापार
को‌ई है सुत सजा,किसीने धरा पिताका साज
को‌ई स्नेहमयी जननी बन करता नटका काज
को‌ई सज पत्नी,पति को‌ई करें प्रेमकी बात
को‌ई सुहृद बना,बैरी बन को‌ई करता घात
को‌ई राजा रंक बना,को‌ई कायर,अति शूर
को‌ई अति दयालु बनता,को‌ई हिंसक अति क्रूर
को‌ई ब्राह्माण,शूद्र, श्वपच है, को‌ई बनता मूढ़
पण्डित परम स्वाँग धर को‌ई करता बातें गूढ़
को‌ई रोता,हँसता को‌ई,को‌ई है गभीर
को‌ई कातर बन कराहता,को‌ई धरता धीर
रहते सभी स्वाँग अपनेके सभी भाँति अनुकूल
होती नाश पात्रता,जो किञ्चित्‌ करता प्रतिकूल
मनमें सभी समझते हैं अपना सच्चा सबन्ध
इसीलिये आसक्ति नहीं कर सकती उनको अन्ध
किसी वस्तुमें नहीं मानते कुछ भी अपना भाव
रंगमंच पर किंतु दिखाते तत्परतासे दाव
इसी तरह जगमें सब खेलें खेल सभी अविकार
मायापति नटवर नायक के शुभ इंगित-‌अनुसार।

साभार मंजु गुप्ता जी
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...