Skip to main content

आज कैसी ये श्याम शाम है आई , सलोनी जी

"तुम्हारी यादों की महक इन हवाओं में है
   प्यार ही प्यार बिखरा फिजाओं में है
    ऐसा ना हो की दूरियां दर्द बन जायें
       अब तो आ जाओ कि इन्तज़ार
                 इन निगाहों में है"

मनमोहक मनमोहिनी मनमोहन
आहा।।
आज कैसी ये श्याम शाम है आई
आज कैसी श्यामा ये आसमान में घटाएं हैं छाई
आज हर फूल है महका हर कली कली है महकाई
आज जैसे ये संगिनी फिर है हर्षाई
आज डाल डाल हर पात पात श्यामाश्याम ज्यों लिख आई
पवन बन जैसे पूरे जग में इंद्रधनुषी रंग भर आई
आज भी कुछ ऐसे ही अनगिनत रंग प्रियाप्रियतम के मिलन की छुअन से सबके लिए चुन लाई
ललिता विशाखा चमेली चम्पा तमाम सखियां सच हो आईं
विचर रही श्यामाश्याम संग
पूरा निकुंज हुआ आज झिलमिल झिलमिल जब सब मिल बैठीं आज मधुर मधुर गीत मिलन के मिल मिल गाईं
हंसी ठिठोली से हुई सरस पवन
हर पुष्प पुष्प पर जैसे कोई जादू कर आई
आसमान रंग भरा हर्षाई सी है आज ये धरा
होने जा रहा जैसे आज ये मौसम भी कुछ रोमांच भरा
पूरा ब्रजमंडल है महका
निधिवन का हर कुंज है हरा भरा रंग भरा
कहीं बज रहा ढोल मृदंग
कहीं बज रही है शहनाई
कहीं हो रहा रोमांचक नृत्य
कहीं  नूपुर झांझर की मधुर ध्वनि दे रही सुनाई
आज जैसे पिया प्रिय के मिलन की महारास मिलन रात ही आई
बैठे हैं दोनों झूले पे
झूल रहे हैं मंद मंद देत मुस्काई
देख देख अपनी रंग रंगनियों को पूर्ण प्रेममई आज राधा जु भी हैं उन्मादित श्याम संग रही नयन मिलाई
कुछ ही पल बीते जैसे ये उन्मुक्त घटा और और गहराई
जब श्यामसुंदर ने प्रिया की चाहत को समझ सुमधुर वंशी दी बजाई
हाए।।
अब तो राधा जु संग सब सखियां हुई मदहोश
दी हर इक ने सुधि बुद्ध बिसराई रहा भेद न आज कोई जैसे सब की सब राधा ही हो आईं
भान नहीं आज देह माँग का सब कृष्ण प्रेम में हैं नहाई
चाहती हैं कृष्ण संग हों सबके
तो कृष्ण ने भी लिए अनेक मनमोहक रूप बनाई
जब चाहा कि राधा जु संग हों
तो सब और राधा राधा ही हैं छाईं
हुआ यूँ कुछ रास में महारास
आज सब राधा माधव माधव राधा हो आईं
छिड़ा राग अनुराग ऐसा
सब योग विरह हुए छूमंत्र
जैसे मधुरम घटाएं ले रही
अंग अंग हरि हरितिमा के आलिंगन में अंगड़ाई
ऐसे प्रेम नृत्य में सब सब कुछ दिया आज भुलाई
हुईं सब सखियां विलीन राधा में कृष्ण ने राधा को लिया आगोश में हो गया अब अद्भुत मिलन जब कोई सखी भी न आज सखी रह पाई
सब हुईं इक राधा और हुई विलीन मोहन में
आज सगरी प्राकृतिक समा गईं अप्राकृतिक में
मधुर पुरुष प्राकृति मिलन हुआ अद्भुत संपूर्ण मोहन राधे में राधा मोहन में है समाई
आज कैसी हैं ये घटाएं छाईं
हुआ प्रियाप्रियतम मिलन
आज धरा अंबर ज्यों हुए एक
है आज हर कण महका
सांवरी सलोनी सरकार के संग अंग अंग रोम रोम है बहका बहका

"प्रेम तुम्हारा होगा किसी के लिए दवा प्यारे
मेरा तो ये नशा-ए-जाम है
जो भरा रहे कभी छलके
प्यारे तेरे दम से हुआ न खाली कभी कसम से"

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हरिवंश की,जब लगि आयौ नांहि। नव निकुन्ज नित माधुरी, क्यो परसै मन माहिं।।2।। वृन्दावन सत करन कौं, कीन्हों मन उत्साह। नवल राधिका कृपा बिनु , कैसे होत निवाह।।3।। यह आशा धरि चित्त में, कहत यथा मति मोर । वृन्दावन सुख रंग कौ, काहु न पायौ ओर।।4।। दुर्लभ दुर्घट सबन ते, वृन्दावन निज भौन। नवल राधिका कृपा बिनु कहिधौं पावै कौन।।5।। सबै अंग गुन हीन हीन हौं, ताको यत्न न कोई। एक कुशोरी कृपा ते, जो कछु होइ सो होइ।।6।। सोऊ कृपा अति सुगम नहिं, ताकौ कौन उपाव चरण शरण हरिवंश की, सहजहि बन्यौ बनाव ।।7।। हरिवंश चरण उर धरनि धरि,मन वच के विश्वास कुँवर कृपा ह्वै है तबहि, अरु वृन्दावन बास।।8।। प्रिया चरण बल जानि कै, बाढ्यौ हिये हुलास। तेई उर में आनि है , वृंदा विपिन प्रकाश।।9।। कुँवरि किशोरीलाडली,करुणानिध सुकुमारि । वरनो वृंदा बिपिन कौं, तिनके चरन सँभारि।।10।। हेममई अवनी सहज,रतन खचित बहु  रंग।।11।। वृन्दावन झलकन झमक,फुले नै

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... परमानन्द प्रभु चतुर ग्वालिनी, ब्रजरज तज मेरी जाएँ बलाएँ... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... ये ब्रज की महिमा है कि सभी तीर्थ स्थल भी ब्रज में निवास करने को उत्सुक हुए थे एवं उन्होने श्री कृष्ण से ब्रज में निवास करने की इच्छा जताई। ब्रज की महिमा का वर्णन करना बहुत कठिन है, क्योंकि इसकी महिमा गाते-गाते ऋषि-मुनि भी तृप्त नहीं होते। भगवान श्री कृष्ण द्वारा वन गोचारण से ब्रज-रज का कण-कण कृष्णरूप हो गया है तभी तो समस्त भक्त जन यहाँ आते हैं और इस पावन रज को शिरोधार्य कर स्वयं को कृतार्थ करते हैं। रसखान ने ब्रज रज की महिमा बताते हुए कहा है :- "एक ब्रज रेणुका पै चिन्तामनि वार डारूँ" वास्तव में महिमामयी ब्रजमण्डल की कथा अकथनीय है क्योंकि यहाँ श्री ब्रह्मा जी, शिवजी, ऋषि-मुनि, देवता आदि तपस्या करते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री ब्रह्मा जी कहते हैं:- "भगवान मुझे इस धरात