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जागो संगिनी अब तुम्हें रोना नहीँ , सलोनी जी

उठो
जागो संगिनी
अब तुम्हें सोना नहीं
तूने जगाया है संग मेरा अपने भीतर ही

अश्रु बहाये तूने कई
जो थे मेरे प्रेम वंदन के लिए
व्यर्थ इन्हें अब गंवाना नहीं
संसार के लिए बहाना नहीं

तुम्हारे भीतर जो जोत जगी है
प्रज्वलित है वो मुझमें ही
सेविका बन अब समर्पित करदो
मुझे अनकहे अपने भाव भी

हर्षिणी हो तुम हर्ष देती हो
विरह का रोना रोना नहीं
बरसाने वारी रसवर्षिणी की
बनो अब इक रस फुहार तुम्ही

राधा ही अराधिका है
मेरा भी आधार वही
सांवरे की सलोनी(राधा)सरकार
की बनो इक रसधार तुम्ही
जागो और जगादो शक्ति को
जो भीतर मेरे वो भीतर तेरे भी
मत जाने दो व्यर्थ उसे
जो पड़ी थी अब तक निष्प्राण कहीं

तुम गोपी हो
तन मन धन से मेरी
जो तुम से कहदे कोई
वो कृष्ण है
और निर्वस्त्र तुम्ही
तो हो जाना न तुम निर्वस्त्र कहीं
कह देना हो तुम नग्न आत्मा
कृष्ण ही की
कोई देह नहीं
है हिम्मत तो बनके बताओ
अब कृष्ण तुम
जिसने नग्न स्त्रियों के सामने
खोया अपना ईश्वरत्व नहीं

कहा जो तुम से किसी ने
कि 16,108 रानियां थी मेरी
तो कह देना 16,109वीं तुम भी
भीतर से पति परमेश्वर माना
तो हर ले तुम्हारी इंद्रयों को
कोई ऐसा जितेन्द्रीय नहीं
नारी की रज्ञा की खातिर
धरे मैंने ही रूप कई
खोया कभी अपना पुरुषत्व नहीं

मीरा हो तुम मेरी
पूजा अर्चना की हकदार सही
मार भी दे कोई तुम्हें भावों से
ऐसा कोई ज़हर बना ही नहीं
ठेस पहुँचादे तुम्हारे सम्मान को
ऐसा कोई अपमान ही नहीं

द्रोपदी हो तुम
हर घर की लक्ष्मी
धैर्य कभी खोना नहीं
धमकादे कोई देखो तुम्हें
तो  तुम रो देना नहीं
निडर बनना
क्षमादान देना
बनुंगा मैं ही ढाल तेरी

सीता हो तुम
रूक्मिणी भी
अर्धांगिनी मेरी
अनुसुईया और सती भी
करना तुम सेवा सभी की
मान मेरी सेवा ही
पर देखो दे देना ना
कोई अग्नि परीक्षा कभी भी
क्यों यहां अब कोई राम नहीं

देवकी हो
यशोदा तुम
जननी भी संतान भी तुम
हर घर की आधार तुम्ही
माया माया का शोर जहाँ
वहां हो मेरी प्राण भी तुम्ही
बांध सका न जिस निर्गुण को कोई
उसको सगुण कर बंधनसार किया
उस परमपरमेश्वर की हो स-आधार तुम्ही

हर फूल हर फल हर प्रकृति हो
मुझको स्वसमर्पित तुलसी भी तुम
वृक्ष धरा सा नाता अपना
सर्व समर्पण किया तुमने खुद
जुदा कर तुमको मुझसे
कौन करेगा किसके अर्पण
बनाया गया है तुम्हें उस मिट्टी से
जिससे बनते नहीं कभी भी पत्थर

सारथी बना मैं रणछोड़ भी
लड़ा नहीं खुद
लेकिन प्रेम से जीतना सिखाया
मैंने ही हर युद्ध
तुम बनना दुर्गा
झाँसी की रानी भी
पर होने न देना प्रेम के मार्ग को अवरूध

बनो तुम आवाज़ हर नारी की
पर स्वीकारना न दर्जा परनारी का
तो बना रहूँगा
मैं भी तेरा संबल
छोड़ूंगा न साथ कभी तेरा
तू भी खोना न अपना बल
पुकार दो हर नारी को
कि ये तुम नहीं
मैं ही हूँ
जो छुपा बैठा हूँ उनके अंदर
बस इक विश्वास जगालो
और करदो सम्पूर्ण समर्पण

सखी सच कहुं तो ये
कन्हैया ही है जिसका ये कहना है
जागो और जगाओ हर नारी को
जग के झूठे तानों बानों से
पुरूष तो केवल वही इक है
जगाना हमको ही पुरूषत्व है
गाय को मिला था श्राप कोई
जो वो आज कटती है बेरहमी से
लेकिन औरत को मिला कोई ऐसा श्राप नहीं
तो उठो सखियो
भरना होगा प्रेम अनुराग हमें ही
वंशी की धुन पर ही सही
बनना होगा हमें ही कृष्ण की'जागर्ति'भी
कृष्ण की जागर्ति भी

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