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मुहब्बत के यें तकाज़े है मोहन , सलोनी जी

"कृष्णा
मेरी आँखों में झाँकने से पहले ज़रा सोच लीजिए,
जो हमने नज़रें झुका ली तो क़यामत होगी,
और हमने नज़रें मिला ली तो मोहब्बत होगी.........!!!"

महोब्बत के ये कैसे तकाज़े हैं मोहन
बिन तेरे यूँ तो हम अधूरे नहीं
पर जाने फिर भी हम पूरे क्यों नहीं
तुम हो हर पल संग मेरे
लाड़ लड़ाते अखियां मिलाते
कभी चुराते कभी हो तुम संग
भीतर से तो कभी तुम भिन्न हो जाते
अपना नेह स्नेह भरपूर लुटाते
शर्माई कभी सकुचाई सी
तुम्हारे आलिंगन में खोई सी
लिपट कर तुम्हारे आगोश में चिरनिद्रा में सोई सी

इतना प्रेम दिखाते कि हम'प्रिया'हो जाते
तुम नेह पाश में बांध कर
मुझे जन्नत ही दिखलाते
तुमसे मिलकर खुद को भूला कर
लायक नहीं फिर भी कुपात्रता को भूल जाते
ऐसे मदहोश करते हो मोहन
कभी हम तुम्हारी राधा तो कभी मोहन हो जाते

हा ।।।।।
मोहन ।।।।
मोहन हो जाते ।।।।।
हाँ मोहन ही हो जाते
तुम्हें राधे राधे बुलाते
तुम कहीं नज़र न आते
भेस बदल तुम क्यों हो छल जाते

मोहन बन मैं तड़प गई हूँ
अब राधे बिन रह नहीं पाती
रूह तक कांप गई मेरी
राधे की असहनीय विरह वेदना भीतर तक चीर गई
क्या अब मोहन बन कभी तुम आओगे
क्या कभी वैसा ही प्रेम प्रिया को दे पाओगे
क्या कभी अब मैं फिर से राधा हो पाऊंगी
या तुम्हारे गहन प्रेम आलिंगन के लिए
तुमसे बिन नेह किए तड़प तड़प कर
यूँ ही इक दिन मर जाऊंगी

नहीं ।।।
नहीं कोई शिकायत प्रिय
तुम राधे मैं मोहन बन कर ही अब जी लूंगी
तुम कहो तो तुम्हें मोहन बन कर ही चाह लूँगी
यही अगर तुम्हें भाता हो
यही गर तुम्हारी खुशी है
तो इस दर्द को भी मैं मोहन बन पीलूंगी

आओ राधे
मोहन बन मैं तुम को अब सदा प्यार दूं
तुम कहो जैसे वैसे ही अब तुम्हारी सेवा करूँ
आओ आज मैं तुम्हें राधे
अपने हाथों से सजादूं
आओ आज तुम्हें इतना नेह दूँ
अपनी सुहागिन तुम्हें बनालुं
आओ आज बनुं मैं वस्त्र तुम्हारा
तुम्हें अंग अंग समालुं
आओ बैठो तुम मेरे पास
अधरामृत पिला कर तुम्हें
मैं अपनी तृषा बढ़ा लुं
तुम्हारी आँखों के आंसु तुम मुझे देदो
प्रेमपुरित हर बूँद से मैं अपनी प्यास बुझालुं

आओ राधे
तेरे कपोल और चिबुक पर मैं
अपने नाम की लाली लगादूं
तुम्हारे रोम रोम को छू कर मैं अपना नाम लिखदूं
तुम्हें उठाकर अपनी गोद में
मैं तुम्हें अम्बर धरा का मिलन करादुं
तुम्हारे कोमल हाथों की मेहंदी को
तुम्हारे अंग अंग को चंदन से महकादूं
आओ तुम्हारे मुलायम कोमल अंगों को
अपने कठोर हाथों की छुअन दूँ
बैठो राधे तुम पास मेरे
तुम्हारे चरण कमल सहलादूं
तुम्हारी नूपुर पायल की रूनझुन से
अपनी वंशी की धुन मिलादूं
जावक अल्ता की ठंडक से
तेरी बरसों की तपन को बुझादूं

देखो राधे आज तुम्हारी कृपा दृष्टि से मोहन प्रिया में दिखते हैं
देख देख तुम्हें उनके दिन रैन गुज़रते हैं
सुनो राधे कानों में तेरी मधुर बोली का रस
मोहन मोहन सा घुलता है
आँखों में प्यार तुम्हारा
अधरों पर मुस्कान लिए
हर पल ये मोहन मन राधा राधा कहता है
आओ आज तुम्हें गीत बना लबों से गुनगुनालूं

कहाँ हो राधे कहाँ तुम
क्यों मोहन से दूर अभी
देखो ये दर्द जुदाई का सहा हमसे जाता नहीं
तुम्हारे प्रेम के प्यासे अश्रुबिंदु झरते हैं
पलकों पर प्रिया के नए सपने सजे से हैं
मोहन बन कर राधे को चाहने का अद्भुत है संयोग बना
आ जाओ या कह दो तो
सब सखियन की मनुहार करूँ
तेरा प्रेम पाने को राधे अग्नि सा जलुं
दिन रैन का कोई होश नहीं
तेरे प्रेम सुधारस की खातिर बता अब क्या करूँ

हा राधे।।हा मोहन।।
रट रट कर प्रिया चीत्कार करे
आ जाओ प्रियाप्रियतम
मन व्याकुल अनवरत तड़प न सहे
अब सुनलो इस दासी का प्रेम उद्गार प्रिय
पड़ी ये विरहन राह में
रही पथ को प्रेमअश्रुजल से बुहार प्रिय
आ जाओ कि अब वेदना न ले ले प्राण प्रिय
आ जाओ प्रिय मोहन
तेरी प्रिया प्रेम प्रलाप करे
तुम लौट आओ अब नहीं होता और इंतजार
आँखे पथरा गयी हैं आओ अब मेरे प्यार

"हे श्याम तुम्हारी यादों में,
                  छुप छुप कर आहें भरते हैं।
जब बेचैनी हद से बढ़ती है,
                  तुमको ही पुकारा करते हैं।।
अब बिरह वेदना है इतनी,
                   खुद के साये से डरते हैं।
तुम गैर हुए ये ज्ञात हमें,
                  फिर भी हम तुमपे मरते हैं।।
इतना तो बताओ करुणाकर,
                   क्या प्रेम इसी को कहते हैं।
आत्मा तड़पती रहती है,
                   आँखों से आंसू बहते हैं।।
मुझ गुनहगार की खातिर ही,
                    अब अंत समय ले आ जाओ ।
मुख चंद्र निहारूँ जी भरके,
                     इक बार दरस तो दिखलाओ।।"

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