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नोका विहार लीला आँचल जी

रात्री भोजन के पश्चात सभी सखिया श्यामाश्याम संग कुंज के बाहरी भाग मे एकत्रित है....
तभी राधे कहती है,श्यामसुन्दर चलो आज जमुना पुलिन पर चलते है सब...
श्यामसुन्दर बोले हाँ राधे क्यू नही....,चलो....
सब सखिया और राधे श्यामसुन्दर संग चले......
ये बहुत सुंदर शुक्ल पक्ष की रात्री,चारो ओर मधुर सी चांदनी....चंद्रमा एक ओर से कुछ कटा सा है,पूर्ण नही.....
राधे श्यामसुन्दर की बाह को दोनो हाथो से पकड,सर को कांधे पर झुकाए है....युगल और पीछे पीछे सब सखिया जमुना के किनारे किनारे चल रही.......
कुछ दूर चल राधे श्यामसुन्दर से बोली श्यामसुन्दर मै तो अत्यधिक श्रमित हो गई,मुझसे ओर न चला जायेगा.....
श्यामसुन्दर कुछ विचार कर बोले ,राधे...तो नौका विहार करोगी....
राधे मुस्कुराकर श्यामसुन्दर की ओर देखती है.....वो संकेत समझ गए....
अतिशीघ्र ही नौकाओ का प्रबंध हुआ....
एक नौका हंस की आकृति की,जिसमे पुष्प बिछे है....इसमे हंस के पीछे वाले भाग मे श्यामाश्याम बैठेते है,उसी मुद्रा मे....पर अब कुछ लेटने की मुद्रा है...
राधे ने उसी प्रकार दोनो कर से श्यामसुन्दर की भुजा को पकड रखा है....कांधे पर सर है उनका.....
एक सखी नाव चला रही है,बाकी सखिया भी कुछ नाव मे आगे पीछे है....सबका ध्यान उसी ओर.....
दोनो ही आकाश मे स्थित चंद्रमा को देख रहे है.....एकटक।
सहसा राधे बोली,श्यामसुन्दर ये चंद्रमा को तो देखो....इस पर ये श्वेत सी ,झीनी सी चादर कैसी लग रही है न....
कुछ हँसकर बोली ,लगता है चंद्रदेव ने घूंघट किया है।
कहकर जोरो से हँसी,है न श्यामसुन्दर....
श्यामसुन्दर भी उनकी उस उन्मुक्त सी हँसी मे साथ देकर कहते है....
हाँ राधे...
सच कहती हो....
चंद्रमा ने घुंघट कर रखा है,जानती हो क्यु?
राधे बडी ही तत्परता से ,उत्सुकता से,सरलता से श्यामसुन्दर के मुख की ओर देखकर पूछती है.....क्यू श्यामसुन्दर?
वो  मुस्कुराकर कहते है,लज्जावश राधे....
राधे कुछ शोचनीय मुद्रा मे बोली लज्जावश...पर लज्जा क्यू,किससे?
अब श्यामसुन्दर राधे के मुख की ओर देख बोले,प्यारी राधे तुमसे....तुमसे शर्माकर,तुम्हारे मुखचंद्र के इस चाँदनी मे दर्शन कर वो सकुचा रहे है....
राधे कुछ लजाई सी होकर ह्रदय मे सिमट गई इनके.....
वो पुनः बोले....राधे,मै तुम्हारे इस सुन्दर रूप की कहू ही कैसे.....
राधे बोल पडी,ओह,श्यामसुन्दर........तुम्है तो मै सदा ही अतिशय मनमोहनी प्रतीत होती हू....किंतु ये सत्य नही है,ऐसा तो तुम्हे इसी कारवश लगता की तुम्हारी मुझ पर अत्यधिक प्रीती है न.....
श्यामसुंदर हँसते है....अच्छा राधे....तुम स्वयं को मेरे नेत्रो से देखो न...तब जानो.....
तभी एक बादल से चंद्रमा छिप गये.....और पीछे से सखिया बोल पडती है....अरे राधे...लो,तुम दोनो की प्रीतीयुक्त वार्ता से तो चंंद्रदेव पूरे ही छिप गये।
श्यामाश्याम हस दिये....सब सखियो भी उसी प्रकार हसने लगी....चंद्रदेव पुनः सबको झाँकने लगे....

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