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निकुँज गिलहरी भाग 4

भाग-4

अहा।।
क्या हुआ होगा ऐसा हाए
सोच कर ही दम भरती हूँ ऐसे सुखद क्षण!!!
अरी देख लेने मात्र से मेरी ये हालत जिसका तुम तो अनुमान ही लगा सकोगी तो फिर
मेरी प्यारी जु की दशा तो स्वभाविक है मैं तो महसूस कर पाई किशोरी जु को तो विश्वेशवर ने -----हाए-----कैसे कहूँ।होंठों से बात निकलती नहीं कि कंपित हो जाते हैं साँसें थम जाती हैं धड़कन तरंगायित हो उठती है
सपन्दन सिहरन ताप शीतलता सब एक साथ!!! अद्भुत सा खिंचाव एक होने का सा और छूटते ही स्वेद कण और देह में मीठा सा गहराई में कहीं ठंडक भरा भीना भीना सच कहूँ दो होने के कारण तड़प का दर्द असहनीय सा एहसास नम आँखें फिर से वही पुकार वही बेचैनी दो होने से मरना भी गंवारा नहीं एक होकर समा कर सिमटकर भीतर ही खत्म ही हो जाती तो-----
एक हुए ही क्यों हुए तो अब दो क्यों कुछ ही क्षणों में अश्रुपात----

न जाओ न जाओ प्रियतम
तुम बिन मुरझा रही तेरी प्रेम बेल प्रियतम
तेरे न होने के मात्र एहसास से टूट रही जीवन डोर प्रियतम
तुम जुदा हुए कि जिंदगानी ज्यों हमसे रूठ ही गई प्रियतम
कब होगा फिर से मधुर मिलन प्रियतम
उस घड़ी तक होगी अनवरत असहनीय तड़प प्रियतम

हा --------------

श्यामा जु को तो जैसे कण कण में श्यामसुंदर ही दिख रहे हों जैसे उनकी देह के रोम रोम में उनकी महक भरी है जिससे वो श्वास ले पाती हैं एक एक अंग में श्याम भरे हैं जैसे जिससे वो अंगों को क्रियाविन्त करती हैं। उनका एक एक पल एक एक क्रिया समर्पित भाव से अपने प्रियतम को ही अर्पित है।स्वभाविक है मोहन की मोहिनी का असर स्वभाविक ही तो है जैसे एक मूर्छा ही हो उनकी स्थिति ऐसी ही है जैसे वो वाकिफ ही नहीं प्रकृति से भी मदमस्त सखियों तक का आभास नहीं उनकी प्रतिक्रियाओं को भी नहीं देख पातीं हंसी ठिठोली नहीं भाती है अभी भी उनको।न जाने कब वो सांवरे से भिन्नता को मान पाएंगी जान कर भी अंजान सी बनी हैं अभी आखिर कब तक!!!खैर उनकी इस विदशा से मेरा रोम रोम पुकार कर रहा है
आओ प्रियतम आओ प्रियतम।।
क्रमशः

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