अरी सखी
आज पिया मोहे कंठ लगाए लियो
विरह विरह
कह कह मोहे विरहनि बनाए दियो
कोई न समझे कोई जाने न
क्या विरह
क्या हवे विरह की पीर सखी री
आज पिया सब सुझाए दियो
पिया मिलन की तड़प लिए
बेचैन हृदय से रोए रही
विरह विरह में ही सही
बाट पिया की जोए रही
घर बार का कुछ भेद नहीं
काम काज की भी न सुध रही
विरह की स्वामिनी
विरह की उपासिका
प्रेम वियोगन सन्यासन मैं
सुन सुन पाए के भी पिया को खोए रही
पिया के संग संग सब अपनों से भी दूर होए रही
मिलन की आस को हिए में संजोया था
तड़प तड़प के ही पिया को खुद पाया भी
अटल निश्चय और लगन से उनसे मिल आई भी
पिया ने हर पल हर क्षण साथ निभाया भी
आभार कर मैंने भी सदा सर नवाया भी
वो मुझ में मैं उनमें
दो होने का भेद पाया नहीं
फिर इक दिन ऐसा आया सखी
विरह की तड़प क्या किसी ने पाठ पढ़ा दिया
मैंने पिया को खुद से दूर खड़े देखा तभी
पिया वहीं हैं पर मैं मैं न रही
रोना व्याकुल रहना
विरह रोग खुद ने ही लगाए लिया
संग मेरे पिया को अनदेखा कर दिया
देख देख मुझ पगली को पहले तो मुस्काते रहे
जब हाल बेहाल देखा मेरा
पिया ने आए कंठ लगाए लिया
मैं भी गुनहगार सी
उनके कंठ लगी रही
आंसु पोंछ मेरे फिर
पिया ने मुझसे कुछ कहा भी
मेरी आँखों में देखो री
क्या मैं इतना निष्ठुर दिखता हूँ
जो तू मुझ संग होए के भी
विरह से है जल रही
इतना कह पिया ने
विरहअग्नि को तो जला ही दिया
नज़र तो मैं मिला न सकी
पर पिया का स्पर्श तो हाल ही में पा लिया
मैं तो सदा से संग हूँ तेरे
तू काहे फिर रोए रही
विरह विरह कुछ भी नहीं
मैं तो भीतर हूँ मेरी प्यारी सखी
जिस जिस भाव से तू मुझे देखेगी
वही भाव मैं बन जाऊंगा
"विरह मिलके बिछुड़ने के बाद
फिर से मिलन की तड़प है"
विरह वो क्या जाने
जो कभी मुझसे मिला ही नहीं
तेरे प्रेम की खातिर ही तो संग तेरे डोलता हूँ
सिवाय मेरे संग के तूने कभी कुछ चाहा नहीं
इसीलिए तो'संगिनी'तुम्हें मैं बोलता हूँ
सुन पिया की वाणी मैं
विरह को समझ गई
नज़र तो पिया से मिला न सकी पर
आगोश में उनके मैं संवर गई
अब न कभी भी रोना तुम
भावों को अपने संजोना तुम
आनंदघन स्वरूपा(राधा)की
आनंद घन स्वरूप हो
प्रेम का अथाह सागर हूँ मैं
प्रेम से ही मुझे भिगोना भी
आंसुओं से धोना नहीं
इतना कह मेरे पिया
मुझ में ही समा गए
राधा संग मुस्काते से मेरे मन मंदिर में समा गए
मन मंदिर में समा ही गए
तब से लेकर आज तक सखी
मैं कभी भी रोई नहीं
जीवन उनका
मेरे पास अब
उनकी इक सौगात है
इस उपहार को मैं अब
हंस कर ही स्वीकार करूँ
प्रारब्ध को भोग सखी
पिया की मैं पिया में ही जाए मिलूं
पिया की मैं पिया में ही जाए मिलूं
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