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प्रेम पिपासा लेकर आई , सलोनी जी

प्रेम पिपासा लेकर आई
सुंदर सलोनी छवि मन में समाई
ना तप जानुं ना जप जानुं
ना पहचानुं केवल आस तुम्हारी
आशा का बंधन टूट न जाए
लगन मिलन की छूट न जाए
ओ गिरधारी ओ बनवारी
सुन लो मेरी दीन पुकार
तुम बिन पल छिन कल न परत हैं
बिकल नयन दिन रैन झरत हैं
श्याम सलोना कर गया टोना
दे गया रोना
बाजी गई मैं हार
कैसे तुम बिन हाए रहूँ
कैसे बिरह बलाएं सहुं
श्याम बेदर्दी कैसी करदी
ऐसी कदर की जाऊँ बलिहार
श्याम प्यारे क्यों मौन धरा है
अखियों से जो वार किए हैं
होंठों पे जो मुस्कान मन हरे है
उस पर भी तू टेढ़ी चाल चले है
सुन तो लो मनमीत मेरी मनुहार
प्रेम तो तुम से कर ही लिया है
मन न लुंगी जब दे ही दिया है
बंसी की धुन छेड़ी है तूने
तन मन धन अब अर्पण करूँगी
तू न बोले मुख न खोले
तो सुन तुम बिन अब
मैं भी मौन धरूंगी
प्रिए तुम सा ही मैं मौन धरूँगी

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