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ओस की बूंदे है --- सलोनी जी

“ओस की बूंदे हैं, आंख में नमी है,
ना ऊपर आसमां है ना नीचे ज़मीं है ।
ये कैसा मोड़ है जिन्‍दगी का
जो लोग ज़िन्दगी है मेरी
उनकी ही कमी है"

अरे रूको
रूको ज़रा
छोड़ो छोड़ दो इनको
मत रोको जाने दो
यूँ न तड़पाओ
बहुत दुखद एहसास है ये तड़प
जिया है इसको इनके लिए
मिलन से पहले
जो लावा सी धधकती है भीतर
ले जाती है गहराई में
जहाँ जान सी ही निकल जाए वहाँ
तुम्हें एहसास नहीं
तो मत रोको इन्हें
जाने दो

बैठो तुम मुझ संग
आओ भरने दो उड़ान इक ऐसी
तड़प से मधुर मिलन तक
चलो ले चलुं तुम्हें आज संग
जिसे कहने में लड़खड़ा जाती है ज़ुबां
लिखते हाथ कांप जाते हैं
आँख भर आती है
आओ तुम्हें ले चलुं वहाँ

ऐसी वेदना जगी है हृदय में मिलन की
चल दिए दोनों राह एक ही
चलें डग मग हुए मदहोश से
आंसु ही आंसु लगे मदिरा पान की
कुंज निकुंज में चलुं व्याकुल पवन सी
देख मिलन की तीव्र इच्छा को
रोक न पाई चले वो अकेले ही
देख उन्हें यूँ आकुल व्याकुल
आई मुझमें भी तीव्रता आंधी सी
महक को उनकी ले आई परस्पर
दौड़ गई दोनों के चेहरे पर मुस्कान ही

पर देखो कैसा अद्भुत प्रेम
रूक गए दोनों के कदम
सोच ये पास हैं दोनों
छुप ही गए फिर भी
लगे सुखाने आंसुओं को
दबाने तड़प को जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं
देख न लें दर्द इक दूजे का
हुए यूँ जैसे तड़प ने कभी छुआ ही नहीं

रहा न गया तो पाया पल में सनमुख ही
शर्माई राधा हुए कृष्ण प्रेममयी
नज़रें हैं झुकी छूने को हैं तत्पर ही
पर बिन नज़ाकत मिलन में मज़ा नहीं
आँख बचाकर प्रिया उठ भाग चलीं
प्रियतम ने भी पकड़ी नाज़ुक कलाई
लगती है मोहन मुझे
कह राधा ने फिर की चतुराई

अब कान्हा से भी दूरी न सही जाए
नटखट ने मधुर राधानाम की बंसी बजाई
क्या करती अब प्यारी
व्याकुल बेचैन खुद-ब-खुद ही खिंची चली आई
कहती हैं माफ करो अब न करूँगी कोई मान चतुराई
छोड़ बंसी श्याम ने झट श्यामा अंक लगाई

मदहोश हुए दोनों एक दूजे में
अधरामृत रससुधा सी बहने लगी
जब प्रेमवर्षिणी संगिनी तृष्ति आनंदघन सागर के कंठ लगी
दो जिस्म इक जान हुए
प्रेम वाली इक चूनर में ली सारी रैन बिताई
हुआ यूँ प्रगाढ़ ये मिलन कि कभी जुदा न हों
आलस्य भरी सुबह हो आई

एकांत में देखो सखी दोनों मिलन का अद्भुत आनंद हैं पाई
जिसे देख ये शुष्क पवन भी नम हो आई
सुबह हुई मधुरम मधुरम
सब सखियां भी हैं हर्षाई
लगी करने तैयारी उनके स्नान श्रृंगार की
हैं सबकी सब उल्लिसत उल्साई
शोर करते हैं शुक सारिका
कि आँख प्रियाप्रियतम की खुले
ये पवन भी जा कानों में सरसरसाई

छूकर उनके प्रेमलिप्त अधर व अंगों को
पूरे जग में एक प्रभात फेरी दे आई
हुआ अद्भुत मिलन श्यामाश्याम का
सम्पूर्ण विश्व में प्रेम का संदेस दे आई
बहती रहे ये प्रेमसुधा यूँ ही
कभी न हो कोई राधा जुदा मोहन से
सबके हृदय के प्रेम तार ये पवन छेड़ आई
दो आशीष कि रहे ये सदा रसभरी
रंगों भरी राधामोहन प्रेम से छुई
महके और रहे इंद्रधनुष सी आसमान में छाई

" प्रभु हम पे कृपा करना, प्रभु हमपे दया करना..!
वैकुण्ठ तो यहीं है, ह्रदय में ही रहा करना...!!

हम मोर बन के मोहन नाचा करेंगे वन में...!
तुम श्याम घटा बनकर उस बन में उड़ा करना...!!

हम राधेश्याम जग में, तुमको ही निहारेंगे...!
तुम दिव्य ज्योति बन कर, नैनों में बसा करना...!!
प्रभु हम पे कृपा करना...."

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