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मेरे मनमोहन कहाँ गए तुम --सलोनी जी

मेरे दिल मे मेरा यार मगर मिलता नहीं
यकीनन उसे भी प्यार है मगर कहता नहीं...

मेरे मनमोहन
कहाँ गए तुम
कहीं दूर तो नहीं
यहीं मेरे पास हो तुम
हर पल हर घड़ी हो तुम
फिर भी न जाने क्यों
तुम्हें ढूँढे ये नज़र
मेरे मनमोहन
कहाँ हो तुम

तुम्हें संग ही पाती हूँ
कभी तुम बन कर जीती हूँ
कभी तुम्हें खो न दूँ
डरती हूँ
कभी तुम संग हो मेरे
छुअन महसूस कर
अभी नहीं मोहन
कह जाती हूँ
तुम से नेह लगाती
तुम्हारे लाड से लजा जाती हूँ
हर पल खुद को तेरे आगोश में पाती
एक ठंडी आह सी भर जाती हूँ
पल में तुम्हारे स्नेहिल आलिंगन से
सिमट कर महक जाती हूँ
तुम्हें भी प्रेम है मुझसे मोहन
इस बात पे जी जाती हूँ

आह।।
कहाँ हो तुम
कहाँ गए तुम
तुम्हें न पाकर पास अपने
सिहर जाती हूँ
तलाशती हूँ तुम्हें
अश्रु भर लाती हूँ
तुम न दिखो पल भर तो
बेजान सी हो जाती हूँ
शिकवा नहीं तुमसे मोहन
शायद।।पर नहीं शायद
क्या मैं तुम्हें भूल जाती हूँ
ना
नहीं ये सच
जैसे तुम न कभी भूले
मैं भी कहां भुला पाती हूँ
तुम हो यहीं आस पास कहीं
जाने फिर मैं ही खो जाती हूँ
हाँ तुम तो होते हो
गुम मैं हो जाती हूँ
तुम ढूँढो मुझे मोहन
रोते बिलखते तुम्हें पुकारती हूँ
और तुम
तुम मेरे प्रियतम
पल न सह पाते हो
दौड़े चले आते हो
वंशी की धुन सुनाकर
पास ही तो हो मुस्काते हो
ये एहसास दिलाते हो
बाहों में भर कर अपनी
मेरी तड़पती रूह को
थिरकते कदमों को
रोती आँखों को
खत्म होते इरादों को
टूटते सपनों को
मेरे जज्बातों को
एक बार फिर
बार बार जीना सिखाते हो तुम
हाँ कितनी महोब्बत
तुम मुझसे करते हो
महोब्बत ही बार बार
जतलाते हो तुम
तब आंसु भी मेरे
रोते लब भी मेरे
तुम्हें छू कर
पल में हर गम को भुला देते हो तुम
तुम्हारी राधा हूं मोहन
ये कह कर खो जाती हूँ
होश नहीं रहता कुछ
कृष्ण कौन राधे कौन
सब कुछ ही भूल जाती हूँ
हाँ सब ही भूल जाती हूँ

हाए।।
फिर याद आता है मोहन
जब होश में आ जाती हूँ
कभी कहा था तुमसे
राधे को जीना है मुझे
यही एहसास
कभी दूर जाकर
तो कभी पास आकर
तुम कराते हो
राधे से भी दूर नहीं
फिर भी पल पल उसे रूलाते हो तुम
वो चुप हैं किसी से कुछ न कहती हैं
तन्हा दिन में और रातों में यादों में ही रहती हैं
कभी नहीं तो कभी पाकर तुम्हें
वो खोई सी रहती हैं
कभी तुम में
या कभी खुद में तुमको ही पाती हैं
तुम्हारी यादों में वो
खुद मोहन हो जाती हैं
कभी इठलाती बल खाती सी
तुम्हें संग पाकर इतराती सी
तो कभी न पाकर तुम्हें
वो अश्रुयों में नहा जाती हैं

धन्य हो तुम मोहन
धन्य तुम्हारी राधा
जो आज तक
न जाने कब से
यूँ हो प्रेम भक्ति में
इस जग में कण कण में
सम्माहित हो
हर काल के आगाज़ में
और अंत में तुम दोनों ही रहोगे
ऐसा अजर अमर ये प्रेम तुम्हारा
तुमही सब में जीते रहोगे
दासी करलो अपनी मोहन
अब इस तड़प और जीवन को
शांत करदो
भर कर अपने भीतर मुझको
राधे अपनी सेवा में लो
करदो मुझे भी प्रेम को अर्पण
करदो मुझे चरणों में अर्पण

"मेरी बेबसी , मेरी इल्तिजा़
मेरी ज़ब्त-ए-आह पर नजर तो कर...
कहीं मर ना जाऊँ तुझे पुकार-पुकार
मेरी टूटती साँस की खबर तो रख....
तेरे बिना मेरी रूह खाली
तेरे बिना जिन्दगी अधूरी...
मेरी आखिरी ख्वाहिश में तू मुझे
अपने कदमों में दफन तो कर..."

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