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यूँ तो जो कुछ पास था मेर , श्रिया दीदी

यूँ तो जो कुछ पास था मेरे, सब स्याम बज़रिया बेच आयी
कहीं इनाम मिला, और कहीं क़ीमत भी नहीं
कुछ तुम्हारे लिए आँखों में छुपा रक्खा है
ज़रा देख लो प्रियतम, न देखो तो शिकायत भी नहीं।

रास्ता भूल गयी या तुम ही हो मंज़िल मेरी
कोई लाया है की ख़ुद आयी हूँ मालूम नहीं
कहतें हैं इश्क़ की नज़रें भी हँसी होती है
मैं भी कुछ लायी हूँ, क्या लायी मालूम नहीं

जो नज़र परती है, तेरे चेहरे पे ठहर जाती है
मुस्करा देते हो रसमन भी अगर महफ़िल में
इक धनक टूट के सीने में बिखर जाती है

गरम चुम्बन से तराशा हुआ तेरा नाज़ुक बदन
जिसकी इक आँच से हर रूह पिघल जाती है
मैंने सोंचा है तो सब सोंचते होंगे शायद
प्यास इस तरह भी क्या साँचे में ढल जाती है

क्या कमी है जो करोगे मेरा नज़राना क़ुबूल
चाहने वाले बहुत, चाह के अफ़साने बहुत
एक ही रात सही गरम-ए-हंगामा-ए-इश्क़
एक ही रात में जल मरते हैं परवाने बहुत

फिर भी इक रात में सौ तरह के मोड़ आते हैं
काश तुमको कभी तन्हाई का एहसास न हो
काश ऐसा न हो घेरे रहे दुनिया तुमको
और इस तरह की जिस तरह कोई पास न हो

आज की रात जो मेरी ही तरह तनहा है
मैं किसी तरह गुजरूँगी चली जाऊँगी
तुम परेशान न हो, इश्क़ में हंगामा न करो
और कुछ देर पुकारूँगी चली जाऊँगी

तेरे कूँचे में जहाँ इश्क़ उगा करते हैं
खेलूँगी, पुकारूँगी, गुजरूँगी चली जाऊँगी
तुम परेशान न हो, इश्क़ में हंगामा न करो
और कुछ देर पुकारूँगी चली जाऊँगी

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