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श्यामाश्याम मिलन अनुभूति काव्य , सलोनी जी

"हमसे दूर होकर भी हमारे पास हो तुम
हमारी सूनी जिन्दगी की आस हो तुम
कौन कहता है हमसे बिछ्ड़ गये हो तुम
हमारी यादों में कान्हा हमारे साथ हो तुम"

मत पूछो कैसे गुजरता है
हर पल तुम्हारे बिना
कभी बातें करने की हसरत
कभी देखने की तमन्ना
कभी लगता तुम नहीं
कभी जैसे मैं खो गई
कभी रोता ये विरही दिल
कभी सिसकती आँखों में
तेरे प्यार का नशा
कभी तुम्हें खो देने का डर
तो कभी लगती ज़िंदगी कज़ा

जय जय मेरे मदनमोहन
जय जय मेरी किशोरी राधे
जय जय मेरे प्राण प्यारे
जय जय मेरी जीवनाधारा
आप बिन नहीं कुछ भी
आप हो तो हूँ मैं जीती
आप आओ और गले लगा लो
सांसें मेरी महक जाती
आप नहीं तो
सांसों की रफ्तार बदलती
मत जाओ प्रियतम आप
प्रिया तुम बिन दिन रैन तड़पती

अरी सखी क्या बताऊं कुछ दिन पहले जैसे कान्हा लगे मुझसे बिछड़े से जैसे हो दिल में कोई शंका सी
रही मैं बेचैन विरहनी तड़पती ज्यों जल बिन मछली
धरा ध्यान राधे जु का पड़ी निज चरणन की दासी
उठाती किशोरी जु की राह के कंकर
लगा जैसे पहली बार आई निकुंज में देखा राधे संग सखियन का झुरमुट
आनंद में मैं लगी सेवा में सुबह शाम अन्यत्र
बड़भागिनी हुई जब देखा स्वामिनी जु को नज़र उठा झुक कर
किया दंडवत् प्रणाम भी सब सखियन को अर्पण

सब मिल आ बैठीं और सजाने लगीं राधे को मिलकर
मैं पगली देख देख मुस्काती मन भीतर
पंखा करूँ प्यारी जु को आज प्रिया लगीं अति प्यारी अति सुकोमल
खोई खोई सी मोहन के ख्यालों में हर दम
सखियन संग सजा रही उनको
पहना रही आभूषण वस्त्र सुंदर
ले रही हम मिलकर बल्लाईयां
लगें श्यामा जु अद्भुत सुंदर

इतने में कुछ सखियां ले आईं श्यामसुंदर को भी भीतर
सज रहे मोहन भी ऐसे हो जैसे आज पहला ही मिलन
लगें वो चंदा देखें छुप छुप चांदनी की और
नयन हैं झुके मिलने न देते चोरी से इक दूजे को निहार लेते ज्यों दोनों ही चित्तचोर

अब आई वो सुमधुर बेला जब चले प्रिया को ले प्रियतम
लजाते सकुचाते चले दोनों देख रहीं सब सखियां अविचल जोड़ी को हो रहीं सब मंगल सुमंगल
सबके हिय हैं धड़क रहे हो रहीं सब बलिहार प्रियाप्रियतम पर

मैं भी हुई कुंज में शामिल बड़भागिन रही थी भीतर अग्न सी तड़पन
बैठ गई वहाँ सखियन संग लेकिन थी खोई सी सोच रही परेशां सी कुछ अड़चन थी मन अंदर
करने को शांत मन को तब किए नेत्र बंद
सोचा ध्यान में बैठुंगी तो होगा शांत सब बाहर भीतर

अरी सखी तब घटी इक ऐसी घटना जिसका अभी तक है मुझ पर गहरा असर
हो रहा देह में मेरी प्रियतम स्पर्श का अनवरत संपदन
जैसे वो छू रहे राधे जु को पर असर हो रहा मुझ पर
अरी गई मैं भीतर तक सीहर
कांप रही पाकर मैं स्नेह श्याम का जैसे हूँ समा जाने को भीतर
अंग अंग पर होने लगा उनकी छुअन का गहरा एहसास
सिमट रही मैं पल पल जैसे लगे वो मुझमें भरने खुद को भीतर
नेत्र बंद से देख कुछ न पाती
लेकिन हाव भाव में होने लगा मेरे परिवर्तन
पहले तो रूकी दो पल लगा ये क्या हो रहा है अनर्थ
पर रोकने पर भी रोक न पाई मैं प्रियतम
ज्यों वो दे रहे नेह श्यामा जु को मेरे भी दिख  रहा तन पर
हैरां थी लेकिन छोड़ दिया देह को खो गई मैं मदहोश हुई था प्रेम का हो रहा असर
तन तो जैसे पड़ा था शिथिल पर मन हुआ गिरफ्त में कान्हा की हो रहा रससार भीतर
विक्षप्ति न हो मिलन प्रियाप्रियतम का
ये सोच हो रही मैं समर्पित पूर्णतम
कृष्ण थे कब से दूर मुझसे
आज हो रहा अभी तक प्रेम मिलन
कंपित हृदय कंपित मन कांप रहा अभी भी तन
सिमट रही सब गहराईयां जैसे हुए एक प्रियाप्रियतम
लिपटे वो ऐसे जैसे हों लताएं लिपटी कभी न सुलझें ऐसी गाढ़ उल्झन
जल रही थी जो दिल में विरह की अग्नि हो रही वो शांत अविरल बढ़ रहा देह का ताप अकिंचन
पड़ी सुषप्त छाई मदहोशी बेहोशी तन मन
क्यों दूर होते हो मनमीत मेरे
हो जाता मेरा तो मरण
फिर सुन कर मेरी करूण पुकार
कर लेते हो तन मन से हरण
चित्तचोर ग्वाले आजा ना
हो जाता तब सम्पूर्ण मिलन

"सांवरीया..ज़माने में ना कोई सहारा नज़र आया ..बस तु ही एक हमें हमारा
नज़र आया...तेरे इश्क में इस कदर बहते
रहे...ना तूफां नज़र आया...ना किनारा
नज़र आया.."

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