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कौन हो तुम , क्यों , कहाँ , कैसे हो तुम , सलोनी जी

"हाथों की मेरी इन लकीरों में सुंदर सा यार लिखा है
दुसरी लकीर को देखा उसमें प्यार बेशुमार लिखा है
खुशी से पढ़कर देखा जन्म-जन्म का साथ लिखा है
अरे ये कोई और नहीं मेरे "साँवरे" का नाम लिखा है"

कौन हो तुम
क्यों कहाँ
कैसे हो तुम
ऐसे जैसे मेरे ही जैसे हो तुम
कैसे सच में लगते हो तुम
मैंने कभी देखा नहीं
फिर भी मेरे ख्यालों से हो तुम
मैंने कभी छुआ भी नहीं
फिर रूह तक छू गए तुम
आस पास ही रहते हो
साये से मंडराते हो तुम
हाथों में ले हाथ चलते
हर पग हो धराते तुम
रूकना हो जहाँ
वहाँ थम जाते तुम
फिज़ाओं में घुलते तुम
तुम नहीं तो श्वास भी न लूं
रोम रोम से महकते तुम
चलुं तो संग चलते
नहीं तो संग ही उठते बैठते तुम
सोते जागते जैसे मैं नहीं बस तुम

बढ़ें कदम तो बढ़ते हो
कभी मस्त पवन से तुम
बाहों में भर लेते हो
आहों में पिघलते तुम
आँखों की नमी तुम
अश्रु बन हो बहते
लेते हो थाम तुम
अधरों से अधरों की
बढ़ाते हो प्यास तुम
मुख से ध्वनि बन
कुछ कुछ कहते तुम
कह कर खुद ही सब सुन लेते तुम
अरे।।ऐसै कैसे हो तुम

भीतर बाहर बाहर भीतर
जीते हो जैसे तुम ही तुम
हर खुशी हर गम का एहसास
धड़कन बन धड़कते तुम
बिन देखे ऐसे हो
देख लुं तो मैं भी तुम
अक्स मेरे में नज़र भी आते तुम
देख खुद को आँखों में मुस्करातेे
कभी मुझमें तुम तो
कभी खुद में नज़र आते तुम

मुझमें मुझसे पहले हो तुम
जहाँ तक जाती गहराई
वहाँ तुम से गहरा कोई नहीं
मेरी ऊँची उड़ानों में भी
सबसे ऊपर हो तुम
पहली और आखिरी
अनवरत सोच हो तुम
जहां तक मैं जाती
संग वहाँ तुम्हें ही पाती
सगरे जगत में फैले
और समाए हो
तुम ही तुम
हैरां हूँ
अरे।।बिन मिले भी
हर कहीं मिल जाते तुम

ना जाने कैसे हो
मेरे विश्वास के जैसे तुम
हृदय से हर बात कर जाते
अनकही को कह जाते तुम
अपने फैसले सब करते तुम
हक से हर बात अपनी
मनवा जाते तुम
किन्तु परन्तु से भी
खड़े आगे नज़र आते तुम
हर घड़ी हर पल
अपना हो बनाते तुम
जायज़ हो गए तुम
रिश्ते जग के नाजायज़
करते हो तुम
कहीं अगर नहीं मैं तो
तब होते वहाँ भी तुम

इतना घुल गए हो
मुझमें नज़र आते तुम
चाहत और हर ख्वाहिश
बस अब तुम ही तुम
फिर भी जाने क्यों
देखना है तुम्हें
स्पर्श कर महसूस करना है तुम्हें
तुम बिन मैं कुछ भी नहीं
हिस्सा नहीं
मेरा सम्पूर्ण जीवन हो तुम

बिन मिले ऐसे हो
एक बार बस मिल जाओ तुम
इतना हो देते
लेने कुछ भी न आते तुम
सामर्थ्य नहीं मुझमें
कर्ज़दार भी न समझते तुम
दो आंसु बहाने से मिलते तुम
पर बेइंतहा रोने से
दिखते क्यों न तुम
ऐसे कैसे हो
सब करके भी
छिप कर क्यों रहते तुम
यकीं कैसे दिलाऊं
आ जाओ
दिख जाओ
चलो कसम से
हम नहीं छूएंगे तुम्हें
छू लेना बेशक तुम
निहारेंगे जब
तब आँखों पर हाथ
रख देना तुम
तुम्हारी संगिनी के सदा संग हो तुम
बस एक बार दिख कर
अधूरी सी कविता को
पूरा कर दो तुम
हाथ जोड़ विनती करूँ
पईंयाँ पड़ूं
जो चाहो सब करा लो तुम

बस एक बार
देखने दो मुझे
कैसे हो दिखते तुम
बस एक बार
एक बार इस प्रेम कहानी में
अपनी मुख्य भूमिका निभाने
उतरो तुम
सरगम तुम
ताल हो तुम
गीत संगीतकार हो तुम
मेरी आवाज़ को ताल दो तुम
बस एक बार
सब पर्दों से निकलो तुम
हटादो फासले जो
दरमियां हमदम

मेरी आत्मा
परमात्मा
मेरे जीवन
मेरे विश्वास
मेरे सब कुछ हो
फिर एक बार देखने को
बस अब मचलते हम
बस एक बार
एक बार
कैसे लगते हो तुम

सच कहती हूँ
मेरी प्यास नहीं हो तुम
देख लेने से जो बुझ जाए
प्यासी तुम्हारी प्रीत की
हर क्षण बिन दिखे भी बढ़ाते तुम
इस प्रीति के जीवन की
कभी न पूरी होने वाली प्रीत हो तुम
जन्मों जन्मों से इस प्रीति के
मनमोहन मनमीत हो तुम
रहोगे सदा संग प्रीत बनके
तुम्हारी प्रीति को सींचते तुम
कभी न खत्म होने वाला
सदा बढ़ते रहने वाला
प्यार हो तुम
बस एक बार कैसे दिखते हो
ये दिखादो ना तुम
एक बार सिर्फ दिखने के लिए ही
आ जाओ तुम
आ जाओ तुम

ये तेरी नज़रों का करम है
जो हम जिंदा हैं
ये तेरी मुरली का करम है
जो हमें तेरी यादों में रखती है
ये तेरे अधर रस की कृपा है
जो हमारे अश्रु रुकते नहीं
वाह रे कान्हा तेरा करम
जब से तेरे नाम का रस पिया
कीमत है कि मेरी गिरती ही नहीं

"नाम तो लिख दूँ उसका, अपनी हर शायरी के साथ
मगर फिर ख्याल आता है मासूम है कहीं बदनाम ना हो जाए !!"

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