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अपने आप की स्मृति

: 💐|| अपने आप की स्मृति ||💐

" हमारी सत्ता है " - यह सामान्य ज्ञान है , और  " वह सत्ता अहं से रहित है " - यह विशेष ज्ञान है !

* स्मृति विशेष ज्ञान की होती है !

हमें अपनी सत्ता का सामान्य ज्ञान तो है पर विशेष ज्ञान नहीं है - यही भूल है !!

* अहंरहित स्वस्वरूप का ज्ञान ही असली ज्ञान है !

अहंरहित स्वस्वरूप के ज्ञान अर्थात तत्वज्ञान के लिये दो बाते बहुत सहायक है -

१ - सुषुप्ति में अहं नहीं रहता , पर हमारा स्वरूप रहता है - इस प्रकार सुषुप्ति का ज्ञान तत्वज्ञान अर्थात स्वस्वरूप के अनुभव में बडा सहायक है |

२ - अनेक योनियों में जाने पर अहं बदलता है पर सत्ता नहीं बदलती - यह ज्ञान तत्वज्ञान में बडा सहायक है |

* सुषुप्ति में अहंकार नहीं रहता , पर हम रहते है !
सुषुप्ति में अहंकार के बिना जैसी स्थिति है , वैसी स्थित जाग्रत में हो जाय तो हमें स्वस्वरूप का अनुभव हो जायेगा !

एकदेशीयपना अहंकार से दीखता है हमारी सत्ता एकदेशीय नहीं है अपितु सर्वदेशीय है |

" मैं हूँ " - ऐसी अपनी सत्ता का अनुभव हमें होता है | " मैं " के कारण " हूँ " है अन्यथा " है " ही है !

उस सत्ता में " मैं " अर्थात अहं नहीं है तभी भगवान ने गीता में निरहंकार होने की बात कही है - " निर्ममो निरहंकार: " ( गीता २/७१; १२/१३ )

" है " रूप से अपनी सत्ता स्वत:स्वाभाविक है , जैसे ब्राह्मण निरन्तर अपने ब्राह्मणपने में स्थित रहता है ऐसे ही " है " में स्वत:स्वाभाविक रहो !

* स्वयं " है " स्वरूप में रहो और उसी में ही रहते हुये सब काम करो !

* अपने घर से बाहर मत निकलो !!

        🍂 || श्री हरि: शरणम् ||🍂

( परम श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचन से )
🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃

❈❈: मेरे प्राणों के प्राण !

भोगों में सुख नहीं है, यह अनुभव बार-बार होता है ;
फिर भी मेरा दुष्ट मन उन्हीं की ओर दौड़ता है |
बहुत समझाने की कोशिश करता हूँ , परन्तु नहीं मानता |
तुम्हारे स्वरुप चिंतन में लगाना चाहता हूँ , कभी कभी
कुछ लगता सा दीखता भी है , परन्तु असल में लगता नहीं| 
मैं  तो मिन्नतां करके हार गया मेरे स्वामी ! अब तुम
अपनी कृपा शक्ति से इसे खींच लो |
मुझे एेसा बना दो कि मैं  सब प्रकार से तुम्हारा
ही हो जाऊँ| धन, ऐश्वर्य, मान जो कोई भी तुम्हारी
और लगने में बाधक हों उन्हें बलात् मुझसे छीन लो |
मुझे चाहे राह का भिखारी बना दो , चाहे सबके
द्वारा तिरस्कृत करा दो , परन्तु अपनी पवित्र स्मृति
मुझे दे दो | मैं बस तुम्हारा स्मरण करता रहूँ | मेरे
सुख दुःख , हानि-लाभ , सब कुछ तुम्हारी स्मृति में
समा जायें |  वे चाहे जैसे आयें - जाएँ, मै सदा
तुम्हारे प्रेम में डूबा रहूँ|

(हनुमान प्रसाद पोद्दार भाईजी)
🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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