नहीँ हो सकती उससे मुहब्बत
फ़क़त वह हर और महकता है
ग़र देखूँ सिर्फ़ गुलाबों में उसे
काँटों में भी वहीँ धड़कता है ।
नहीँ हो सकती ....
हाँ
नहीं हो सकती.....
महोब्बत हमें थी ही नहीं
हम तो गुलाबों से महक चुराते रहे
उसकी बेपनाह नेयमतें लुटाते रहे
यादें भेज कर वो अपनी कांटों जैसे दिल में धड़कते रहे
हाँ
हम पातीयाँ भेज कर रोते रहे
वो पैगाम-ए-दिल देकर मुख फेरते रहे
हम रह गए अकेले जग में
वो सबके साथ खड़े मुस्कुराते रहे
हाँ
होता गर दर्द-ए-जुदाई का गम
तो वो भी हमसे कहेंगे
ये तमन्ना रही दिल में दबी सी
पर वो बेदर्दी से हमारी तमन्नाओं को कुचलते रहे
हाँ
वो लौट कर आएंगे एक दिन
वेदनाओं को हम सींचते रहे
आकर वो लौट गए
हमारी वेदनाओं को भी जला देख सूखे पत्तों सा रौंद गए
हाँ
कौन करे अब महोब्बत
उससे
बार बार आकर झकझोर गए
हम हो जाते गुमशुदा ही
पर उनकी महोब्बत के सदके खो ही न सके
हाँ
हमने भी खा ली है कसम झूठे ज़माने की
नहीं करेंगे इकबाल-ए-ज़ुल्म कुबूल हम भी
करेंगे महोब्बत बेपनाह उससे
पर हाल-ए-दिल न कहेंगे कभी
वो जलाते रहें हमारी प्रेम पातीयां भले
हम और और अभी और लिखते रहेंगे
वो न समझें हमारी महोब्बत को
हम उनके पैगामों में भी महकते रहेंगे
Comments
Post a Comment