दिल में उतर जाने की आदत है मेरी
कान्हा,
अलग पहचान बनाने की आदत है मेरी
जितना गहरा ज़ख्म कोई देते हो मुझे
उतना ही मीठा मुस्कराने की आदत है मेरी....
सच कहुं तो मेरी नहीं
ये भी इक अदा है तुम्हारी
जब देने वाला श्याम है मेरा
तो क्यों मांगु प्रेम की भीख मैं
हर एहसास है मुझे पिया से तो
क्यों किसी से अंक लगुं मैं
हर आलिंगन में अब तुम ही हो छूते
लगते हैं सगरे जग के मिलन झूठे
प्रेम जितना है मुझे श्यामाश्याम से
उससे कहीं अधिक है
मेरे श्यामाश्याम का मुझसे
जब जब दर्द कोई आया है
हाथ थाम पिया ने ही उठाया है
विरह सहा अगर मैंने तो
मिलन का एहसास उसी ने कराया है
मैं बैरन विरहन पिया से दूर कैसे रहुं
दिल रोता है पल पल नयन नम
पुकारा जब भी सांवरे ने हाथ बढ़ाया है
रूदन भारी में भी मन सदा सांवरे सा मुस्काया है
हर गम ने उनके संग का एहसास दुगना कराया है
कंठ लग पिया के प्रेम में सब भुलाया है
मुस्काती श्यामा जु को भी सदा
पिया में ही पाया है
हर सुबह हर संध्या का इंतजार
अब हर रात की तड़प से ज्यादा है
सजती यूँ दुल्हन सी
अब संन्यास को भी भुलाया है
बाहों में चुड़ियां
हाथों में मेहंदी का रंग गहराया है
पहन कर नथ कर्ण कुंडल
कजरारी आँखों ने सहचरि भेस बनाया है
कान्हा की बंसी की धुन
राधे नाम की मस्ती ने
अंग अंग महकाया है
है असर ये किसी अपने की दुआयों का भी
इस बात से मन'हर्षिणी'का हर्षाया
संग उनके भी सख्य भाव उमड़ आया है
एहसास सखी जु ने भी अपनत्व का ऐसा दिया
प्रियतम'संगिनी'हुई विशुद्ध'प्रीति'
प्रेम प्रेम बस प्रेम ही हर तरफ नज़र आया है
श्याम सांवरे अगर मिलो किसी मोड़ पे
मुझे देखकर आँखे न चुरा लेना
प्यारे कान्हा
बस
तुझे देखा है कहीं
कहकर गले लगा लेना
अब ना कोई दरकार प्रिय
ना कोई ख्वाहिश बाकी
रहो तुम संग संग सदा
अंक लगुं भजन करुं
रहुं सदा बन प्रिया जु की प्यारी
बोलो हरि अब चरणों में ही ध्यान लगाया है
हर क्षण अब चरणों का ही ध्यान आया है
तेरी बाँसुरी की धुन कान्हा मेरी रुह की पहचान है
तेरे दिल की धड़कन कान्हा मेरे दिल की जान है
ना सुनु जिस रोज़ कान्हा तेरी ये बंसरी की धुन
लगता है उस रोज़ ये जिस्म ही बेजान है
Comments
Post a Comment