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नास्तिक हूँ

आस्तिकता !!

यह बड़ी बात है ,
गहरा शब्द !
शायद उसे कहते है न
जो जीता सदा भीतर और भीतर !!

वैसे आस्था बिन सम्भव ही क्या ?
श्वसन - प्रश्वसन से लेकर
जनन - मरण तक बिछी है आस्था !!

शास्त्र जानता है कोई नास्तिक नहीँ !
कोई नहीँ , पल पल में फ़ैल गई यह आस्था !
कभी कही एक और सिमटती है
तब वहाँ खड़ा होता है "इष्ट"
जिसे मेरा अभीष्ट ज्ञात हो !

पर आस्तिकता पर नहीँ कहना !
वह बड़ी बात है , आज नहीँ सदा से !
हाँ कोई नहीँ जानता , सिवाय उनके !
वो जानते है ,मैं "नास्तिक" हूँ !
गहरा "नास्तिक" !!
कभी कहते तुम बोलो
तुम आस्तिक नहीँ ,
नास्तिक हो तुम बोलो !!

जब होते सामने तब भी होता नहीँ
कभी नहीँ !
जाता ही नहीँ !
चप्पल नहीँ उतारता
स्वयं को उतरता हूँ ,
आस्था नहीँ निरास्था ही जाता हूँ
सदा !!

उन्होंने ना जाने क्यों ?
इतना गहरा नास्तिक बना दिया
कि बाहर पता नहीँ ,
क्या बात होती है ??
कि बाहर आस्तिक कोई समझे
तब पीड़ा होती है !!

आस्तिक ऐसे नहीँ होते !
उन्हें तो प्रेम होता होगा !
हर श्वांस उनकी प्रियवर-पद ,
छु कर उठती होगी !!
उनमें श्यामसुन्दर अभिन्न होंगे
राम नाम का लहू ही जीवन ऊर्जा होगा !
ना जाने क्या-क्या उनकी अवस्था होगी ??
वह देखते होंगे तब
वहीँ हरि अवतार लें लेते होंगे !!
वह सन्त ही होते होंगे ...
पर - परस्पर्श नहीँ समझते होंगे !!
हरि-स्पर्श ही वह जानते होंगे
और क्या कहू नहीँ कहा जाता !
नास्तिक हूँ , कंपकपी सी ...  ...

हाँ , हूँ नास्तिक !
अब वह भी मानते है
पहले नहीँ मानते थे !
अब मानते है , और मानेंगे देखना !!
अब खुश है , कहते है रहोंगे न नास्तिक !
कहते अब डरता हूँ आस्तिक से !
तुम मुझे मानते ही नहीँ
सो सुकूँ तुम्हारे संग !!
जो मानते है , वह मिलते नहीँ
आस्था नहीँ , एक सूची मिलती है !
आस्तिकों को शायद मुझमेँ
कोई सेल्समेन सा नज़र आता होगा !

खैर , जो भी हो !
मैं नास्तिक हूँ !
हाथ जुड़ नहीँ पाते उन्हें पाकर भी
क्योंकि ...
देखता नहीँ कभी उन्हें
क्योंकि ...
शास्त्र की पोथियाँ सदा
खुलने को तरसती
पर खुलती नहीँ ,
क्योंकि ...
कोई जप नहीँ , तप नहीँ
सेवा नहीँ , स्पर्श से भय सा ...
कुछ नहीँ
होता ही नहीँ
बहुत सोचा क्यों ??
क्यों ऐसा ???
उत्तर मिला
क्योंकि नास्तिक हूँ !

हाँ हूँ नास्तिक और यह वह मानते है !
नास्तिक !!
शायद कभी मुझे भी आस्था होने लगे ,
शायद ...
फिर सोचता हूँ आस्तिक और कैसे होते है ?
नास्तिक हूँ , शायद रहूँगा इस बार !!
--- सत्यजीत तृषित ।।

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