भाग-7
राधा
कान्हा को देख राधे खुद को रोक ही न पातीं हैं भाग कर तो वो गईं लेकिन नज़र मिलाने से सकुचाती हैं आकर उनके समक्ष वो बस एक ही कदम की दूरी पर रूक जाती हैं पलकें हैं झुकी उनकी कदम भी हैं रूके पर धड़कन न थम रही होंठों की जुम्बिश हाल-ए-दिल ब्यान कर जाती है।लो कान्हा बाहों में कहना तो चाहती हैं पर दम भर कर खामोश ही रह जाती हैं।हैं अद्भुत सुंदरता की मूर्त पर सांवरे के प्रेम बिन खुद को अधूरा ही पातीं हैं।कान्हा भी देख राधा को उनमें खो ही जाते हैं वंशी बजाते बजाते वो बजाना ही भूल जाते हैं।निरख राधे की छवि निराली उन पर उनसे ही वो भी थम जाते हैं।करते रहते श्रृंगार रसपान वो निरख निरख ना निरख पाते हैं।राधा की व्याकुलता पर अश्रुजल भर आँखों में वो राधे के चरणों का अभिषेक कर जाते हैं।बढ़ते हैं जब कर छूने को तो पहले तो कांप ही जाते फिर सकुचाते से रूक ही जाते हैं।सखियां हैं अपार यहाँ सोच ये राधा माधव मुश्किल से दूरी बना पाते हैं।छूना ना मोहन अभी इशारे से ही एक दूजे को समझाते हैं।बढ़ते श्याम के हाथों को कटि में राधा अंगों को ढक रही और छोड़ मोहन की राह को वो थोड़ा सा उनसे पीछे हटीं।अब भी श्याम की नज़र श्यामा में और सखियों की श्याम पर पड़ी।
आह।।क्या कहुं अब सुंदर सुंदर श्यामसुंदर की है कैसी मनोहर सलोनी छवि।देख कर आभा राधामोहन की संग संगिनी तो आज शायराना हुई।लफ्ज़ नहीं हैं आज शब्दकोश में कोई ऐसी वो त्रिभुवन की अनंत सुंदरता में है खोई खोई।ऐसी छटा को कर सके ज़ाहिर ऐसी कोई कविता ना कोई उपमा ही हुई।क्या कहुं कैसे लिखुं या चुप ही रहुं ऐसे ही बस उनमें आज मौन ही खोई रहुं।मन है उन्माद भरा पर तन से है शिथिल हुई संगिनी आज भीतर तक सपंदित हुई।बिन छुए ही जैसे छू गया हो कोई ऐसी वो व्याकुलित हुई।आज उसका भाव नज़रबंद हुआ कुछ भी कह कर और उसे इस मधुर मिलन की घड़ी से अभी लौटना ही नहीं।
क्रमशः
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