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विनय सुनियो स्याम मोहिनी। -- तृषित

विनय सुनियो स्याम मोहिनी ।
विधि काज सब रस रँग सेवा चित् नित् बसियो ।
कर कर रखूँ जबहि तबहिं पग पग धरियो ।
मन मेरो सेवा सुख हर लिनो चरण शरण राखियो ।
सब विधि जागें तृषा रहूँ तृषित ऐसो श्यामा पद नेह उपजियो। 

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