मुझे गुस्ताखियों की आदत हो गयी है
और वो मुझ पर रहमो करम करते हैं
भूल जाऊँ चाहे मैं उनको कभी
वो मुझे याद हर पल करते हैं
गुस्ताख हूँ गलती अक्सर करती हूँ
क्यों वो हर बार नज़रअंदाज करते हैं
मैं खुद को तबाह करने की कोशिश में
वो क्यों मुझे पल पल आबाद करते हैँ
मुझे ख़ामोशी में अब जीना भा रहा है
वो क्यों दिल पर दस्तक बार बार करते हैँ
हाँ जानती हूँ झूठा है प्यार मेरा ही
पर वो मुझसे क्यों सच्चा प्यार करते हैँ
नहीं काबिल की सामने उनके जाऊँ कभी
वो पल पल मिलने के आसार करते हैं
क्यों भुलाते नहीं वो दिल से मुझको
क्यों गुस्ताख को इतना शर्मसार करते हैं
नहीं कर सकता सच कोई इश्क़ इतना
जितना मेरी ये सरकार करते हैँ
Comments
Post a Comment