Skip to main content

मेरी राधे तो हठ कर गईं कि श्याम मैं मान करती हूँ , सलोनी जी

मेरी राधे तो हठ कर गईं  कि श्याम मैं मान करती हूँ तुम हर बार मनाते हो आज तुम मान करो न
: आहा
तब तो पूछो न क्या क्या हुआ
: नेक बता तो

हाए।।
श्याम क्या जाने मान करनो
: हाँ री उसे क्या पतो मान के होवे

पर राधे जु तो ज़िद पे अड़ी हैं
: मान करनी तो बस एक राधा ही हैं

बहुत कहा श्याम ने न मोते नाए होवेगो
: तो वो बड़ी बाँकी हैं

पर राधा सुने ही ना है
श्याम कहे देख राधे पहली बात
मोकु आवै न मान करनो
फिर बोले छोरियां मान करै तो सुहावै हैं
जल्दी मान भी जावैं हैं
: ओहो
: फिर मान कियो

पर अगर छोरा सच में मान करि गयो तो बाद में पछतानो पड़ै है

नाए मानी राधे
कहवै मैं सिखाऊंगी तोहे मान करनो

लो जी

: कर लो बात
: अलबेली हैं
ना नहीं मानती
: बताओ राधा को क्या जरूरत पड़ी सिखाने की

अब बोली राधे कि देखो श्याम सुंदर जब मैं तोकु बुलाऊं तो तू बोल्यो नाए
: अपना secret koi btaata h
: Hahahaha
: Achha

अब श्याम जी मान गए क्या करें त्रिया हठ
: Aaye haye

फेर लियो मुख
: Vaari jaun
आई राधे मनाने
: Fir के हुयो
: कितनी देर में माने

जैसे ही राधे ने पुकारा श्याम
तो श्याम तो हंस गयो
: हाय
: वाह👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
राधे भी हंसी और बोलीं ऐसे नाए
फिर से करो

: मुझे भी हसि आ रही है

लो जी अब एक और बार
श्याम ।।।।।प्यार से बोली राधे
श्याम तो फिर से लट्टु
बोल पड़े
अब राधे से बर्दाश्त नाए हुआ
पहले तो हंसी फिर रूठ कर गुस्से से बोलीं
अब की बार अगर सही से नाए कियो तो मैं मान कर जाऊंगी मोहन

फस गए श्याम पिया
अब तो करनो ही पड़ैगो मान
एक दम मूड चेंज
अब राधे आईं मनाने
तो श्याम तो मुंह फुलाए बैठे हैं
वो बोली प्रियतम मान जाओ न
प्रियतम नाए सुनै😭
श्याम सुंदर मु संग बतियाओ न
अब तो मुख ही न खोलें😭😭
मान तजि दियो प्यारे
ना ना श्याम सुंदर तो पक्को मान करि गयो😭😭😭

: हाय रबा

अब राधे ज़ोर से हंस पड़ीं
बोलीं सांवरे अब तुम सीख गयो मान करनो
अब ठीक है चलो अब आओ बात करो

पर ये क्या अभी भी नाए परते श्याम 😭
राधे ने पल्ट कर देखा
श्यामसुंदर के कंधे पर हाथ रखा और मंद से मुस्काते हुए पुकारा मेरे प्रियवर प्राणनाथ मेरे जीवनाधार
पर अब भी प्राणनाथ नाए बोल्यो😭😭😭😭
अब तो वो भीतर तक सीहर ही गईं
कांप गईं जब प्यारे ने मुख न खोल्यो और राधे जु का हाथ ही झटक दियो
वो लगी रोने कुरलाने मनुहार करने😭😭😭😭😭
लेकिन श्याम सुंदर कछु न सुनै हैं
ऐसो खेल खेल में  मान कियो कि राधे जु की तो सिट्टी बिट्टी गुल
लगी चिल्लाने
अरी ओ ललिते
अरी विशाखे
चंद्रिके
अरी कोई तो सुनो
लगीं वो सभी देव कुलदेवों को रिझाने
पर कोई न सुनै
राधे से नाए माने तो और किसमें सामर्थ्य बोलो मनाने की
नाए माने
रूष्ट कान्हा जाने लगे
राधे ने वंशी लेकर बजाना आरंभ कियो
इतना दर्द भरा वंशी धुन में कि धरा अंबर सब कांप गए

: हाँ जब तक मान ना किया तो ना किया अब किया तो ऐसो किया किशोरी को भी पीछे छोड़ दिया
: अरे ओ कन्हैया

सब नर किन्नर उदासी भरै
सब खग् मृग चुपचाप हुए
कोई पपीहा कोकिल तक न आह भरै 
एक दम सन्न सारी दिशाएं
काहे सांवरे ने मान धरयो है

श्यामसुंदर भी भीतर ते टूट रहै
पर सखी
वे वहाँ से चल दिए
नाए सुने राधे की पुकार
वंशी भी करै है मनुहार
पर श्याम सुंदर तो गए आज😭😭😭😭
जाते देख गोविंद को राधे तो दौड़ीं हुई बेहाल
सुध बुद्ध ना है कोई न आव देखे न ताव
जब नहीं रूके प्रिये तब तो राधे ने गवाए होशो-हश्र
गिरी वो धरा पर हुई
व्याकुलता में बेहोश 😭😭
इत्ते में आईं सब सखियां
करने लगीं राधे की संभाल
कुछ तो गईं गोपाल के पास कि मान जाओ सखा राधे तुम बिन हुई हैं बेहाल
अभी भी श्यामसुंदर भीतर से टूटे हैं पर न मानी किसी को कोई बात
सब सखियां भी हैं अब बेकरार परेशान
कैसे लाएं होश में राधे को सब हुए विकल अपार
सबने मिल कर अब कियो प्रलाप
ललिते ने तो उठाए ली वंशी और लगी करने मनुहार

जब कोई न सुने तो विरह वेदना से हुआ सब जग बेहाल
लगा ज्यों डूबने गम में सगरा संसार
जल थल धरा सब आकुल व्याकुल हुआ हर और प्रेम आबद्ध रहा न कोई भी अछुता इस बार

सखी तब ललिते को आई यमुने की याद
वो पहले ही मार रही थीं उछाल
बुलाए के यमुने को सब सखियों ने राधे से की गुहार
राधे आईं होश में पर है उनका दर्द असहनीय कि कर ना रहीं वो कोई प्रतिकार
आंसु बह रहे झरझर
न बोल सुन रही हैं
पड़ी शिथिल कि अब नहीं मोहन बिन कोई इलाज

तब सखी
यमुना जी ने कियो एक उपाय
राधे को पहिरादो यमुना जी का हार श्रृंगार और भेजो उनको यमुना पुलिन पर जहाँ प्राणधन कर रहे विहार

मिल सखियन ने कियो राधे जु को सुहागिन यमुने सा तैयार
मान गईं राधे और चलीं वो डगमग डगमग पहुँच गईं यमुना के तीर
करने लगी प्रियवर का इंतज़ार
शाम ढले आए श्याम वहाँ करने को स्नान
हैं थोड़े गुमसुम विकल अधुरे राधे बिन करने लगे यमुने रानी के समक्ष चीत्कार

तब यमुना जी जो पत्नी हैं कृष्ण की करती हैं जो नित चरण स्पर्श उनके आज वो बनी हैं राधे आप
बढ़ीं वो आगे और छू दिए चरण कमल पिया के हुई प्रवाहित अश्रुधार
उठाया जब श्याम ने
खोला पटरानी का घुंघट तो पहले तो पाए न खुद को संभाल
पर रोती राधे को देख रोक न पाए और लगे हँसने ठहाके मार
बोले लै राधे टूट गयो मेरो मान
तू जीत गई और गयो मैं हार

अब प्यारे मोहन आए निकट और पोंछ दिए राधे के अश्रु और भर कर बाहों में किया प्रेम अपार
राधे भी हुईं बेसुध लगी रही उनके कंठ 
भेद नहीं रहा समय का कुछ
हुआ यूँ मेल मिलाप
नाच उठे धरा अंबर
करने लगे पक्षी करल्व
उत्साहित हुए सब जल थल जंगल
हुए सब नर नारी भी उल्लिसत
गूँज उठा पूरा नभ मंडल
झूम उठे दसों दिशि और मेघ घन

कहने लगे अब श्याम सुंदर
बोलो राधे क्यों की थी ज़िद और क्या जाना अब तूने कैसा होता होगा मेरा मन
करती हो मान तुम जब
राधे जु ने कहा तब
अब न करूँगी कभी भी मान
न होगा अपना प्रेम अवरुद्ध
रहेंगे सदा हम संग संग
ये सुन नाच उठीं सखियां सब
हुआ राधे मोहन का अद्भुत मिलन💞💞💞💞💞
हुए दो जिस्म इक जान तब
हुआ सगरा जग प्रेम मग्न
👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

अब बताऊं इक पते की बात
सच कहुं
ये ही है इस हर्षिणी का हाल
कह गई मोहन से करलो तुम मान
और मत करो मुझसे बात
पता है????
मोहन सच गए मान
अब वो न बोले हैं हर्षिणी से भूल ही गए उसका जो उनसे है प्यार
आते हैं
अपनी महक दे जाते हैं
छोड़ जाते हैं हर्षिणी को बेहाल
उनकी महक ने किया है जीना दुश्वार
अब कहुं किससे जाके
करूँ कैसे मनुहार
यमुने जी के जैसे मैंने भी कर देखे कई उपाय
भेजे सखियन संग कई पैगाम
पर मोहन तो दे रहे अब घात पे घात
पर न आते वो हुए हैं निष्ठुर

बतादो कोई अब कैसे किससे करूँ कहाँ प्रेम पुकार
आओ मोहन एक बार
ले के जाओ अब ये असहनीय वेदना और जो बिखरा पड़ा तुम्हारा सब सामान मेरे पास
ले जाओ अपनी यादों को
और महक को भी
ले न सकुं फिर मैं एक भी श्वास
करदो मुझे बेजान


नहीं कहनी करनी कोई अपनी बात
कर जाओ बस अब निष्प्राण
कि नहीं जीना अब मुझे इक पल भी एक बार
सुनलो इस टूटे दिल की टूटी फूटी अटपटी करूण पुकार
आ जाओ बस इक ही बार

"ये ज़हर पीना है आसान
पर नशा-ए-इश्क तो है जानलेवा
लेकर जाएगा अपनी जान"

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हरिवंश की,जब लगि आयौ नांहि। नव निकुन्ज नित माधुरी, क्यो परसै मन माहिं।।2।। वृन्दावन सत करन कौं, कीन्हों मन उत्साह। नवल राधिका कृपा बिनु , कैसे होत निवाह।।3।। यह आशा धरि चित्त में, कहत यथा मति मोर । वृन्दावन सुख रंग कौ, काहु न पायौ ओर।।4।। दुर्लभ दुर्घट सबन ते, वृन्दावन निज भौन। नवल राधिका कृपा बिनु कहिधौं पावै कौन।।5।। सबै अंग गुन हीन हीन हौं, ताको यत्न न कोई। एक कुशोरी कृपा ते, जो कछु होइ सो होइ।।6।। सोऊ कृपा अति सुगम नहिं, ताकौ कौन उपाव चरण शरण हरिवंश की, सहजहि बन्यौ बनाव ।।7।। हरिवंश चरण उर धरनि धरि,मन वच के विश्वास कुँवर कृपा ह्वै है तबहि, अरु वृन्दावन बास।।8।। प्रिया चरण बल जानि कै, बाढ्यौ हिये हुलास। तेई उर में आनि है , वृंदा विपिन प्रकाश।।9।। कुँवरि किशोरीलाडली,करुणानिध सुकुमारि । वरनो वृंदा बिपिन कौं, तिनके चरन सँभारि।।10।। हेममई अवनी सहज,रतन खचित बहु  रंग।।11।। वृन्दावन झलकन झमक,फुले नै

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... परमानन्द प्रभु चतुर ग्वालिनी, ब्रजरज तज मेरी जाएँ बलाएँ... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... ये ब्रज की महिमा है कि सभी तीर्थ स्थल भी ब्रज में निवास करने को उत्सुक हुए थे एवं उन्होने श्री कृष्ण से ब्रज में निवास करने की इच्छा जताई। ब्रज की महिमा का वर्णन करना बहुत कठिन है, क्योंकि इसकी महिमा गाते-गाते ऋषि-मुनि भी तृप्त नहीं होते। भगवान श्री कृष्ण द्वारा वन गोचारण से ब्रज-रज का कण-कण कृष्णरूप हो गया है तभी तो समस्त भक्त जन यहाँ आते हैं और इस पावन रज को शिरोधार्य कर स्वयं को कृतार्थ करते हैं। रसखान ने ब्रज रज की महिमा बताते हुए कहा है :- "एक ब्रज रेणुका पै चिन्तामनि वार डारूँ" वास्तव में महिमामयी ब्रजमण्डल की कथा अकथनीय है क्योंकि यहाँ श्री ब्रह्मा जी, शिवजी, ऋषि-मुनि, देवता आदि तपस्या करते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री ब्रह्मा जी कहते हैं:- "भगवान मुझे इस धरात