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यमुना वंशीवट निकट हरन हिंडोरे हीथ। मंजु दीदी

यमुना   वंशीवट  निकट  हरन  हिंडोरे हीथ।
रंग  देव्यादि  झुलावहिं  झूलत  प्यारी  पीव।
द्वै  खंभ  विसकर्मा  बनाऐ  कामकुंद चढ़ाई।
हरित चूनी, जटिल नग सब लाल हीरा लाई।
बहुत विद्रुम, बहुत मूला, ललित लटके कोर।
बहुरंग    रेसम   बरूहा,  होत  राग   झकोर।
स्याम स्यामा  संग  झूलत, सखी देत झुलाई।
सबै  सरस  सिंगार  कीने रूप बरनि न जाई।

(रचना साभार : डा.मँजु गुप्ता जी)
(नीचे...श्रीजी निजमहल बरसाना धाम में चित्रित भित्ति-चित्र की झाँकी)

हिंडोरें झूलत स्यामा-स्याम
नव नट-नागर, नवल नागरी, सुंदर सुषमा-धाम
सावन मास घटा घन छा‌ई, रिमझिम बरसत मेह
दामिनि दमकत,चमकत गोरी, बढ़त नित्य नव नेह
कल्पद्रुम-तल सीतल छाया रतन-हिंडोरा सोहै
झूलत प्रीतम-प्रिया ताहि पर, परस्पर मोहै
नील-हेम तनु पीत-नील पट सोहत सरस श्रृंगार
चंचल मुकुट, सुचारु चंद्रिका, गल मुक्तामनि-हार
सखि ललितादिक देत झकोरे, मिलत अंग-प्रति-‌अंग
गावत मेघ-मलार मधुर सुर, बाजत ढोल-मृदंग
हँसत-हँसावत रस बरसावत सखी-सहचरी-बृंद
उमग्यौ आनँद-सिन्धु, मगन भ‌ए दो‌ऊ आनँद-कंद।

×××××××
सत्‌-चित्‌-घन परिपूर्णतम, परम प्रेम आनन्द।
विश्वेश्वर वसुदेवसुत, नँदनंदन गोविन्द।
जयति यशोदातनय हरि, देवकि-सुवन ललाम।
राधा-‌उर-सरसिज-तपन, मधुरत अलि अभिराम।
वाणी हो गुण-गान-रत, कर्ण श्रवण-गुण-लीन।
मन सुरूप-चिन्तन-निरत, तन सेवा-‌आधीन॥
पूर्ण समर्पित रहें नित, तन-मन-बुद्धि अनन्य।
सहज सफलता प्राप्तकर, हो मम जीवन धन्य।

*******

मेरी जीवन की निधि स्याम।
जीवन की निधि, प्रानन की निधि, नयनन की निधि स्याम।
स्याम विना जीवन का मेरो, मानहुँ नचत मसान।
वृषा चेष्टा, वृथा वासना, वृथा काम बिनु स्याम।
स्याम बिना कासांे रति कीजै, अपनो कोउ न जहान।
अपने के अपने हैं मेरे प्रान प्रान के स्याम।
का निरखूँ इन हत नयननसों, विनसहिं सबहि निदान।
सुन्दरता के सार नयन की निरवधि निधि हैं स्याम।
छोड़ छोड़ रे मन! अब सब कुछ, कर न काहु को ध्यान।
एक स्याम को ही ह्वै रह तू, सब कुछ तेरे स्याम।

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