साँवरिया ......
धूल तेरे चरणों की चन्दन और अबीर बनी .....
जिसने भी लगायी निजमस्तक से उसकी बिगड़ी तकदीर बनी .....
गुस्ताखी माफ
तेरी मोहब्बत में कान्हा
तुम सी ही हो जाऊँगी
तुम से लिपट कर
तुम सी ही श्याम वरण बन जाऊँगी
धूल बनी तो
तेरे चरणों से लिपट कर चंदन अबीर हो जाऊँगी
धूल ही बनालो हरि
उस इक कण में भी निखर जाऊँगी
तुम देना अपने पग की एक थाप हरि
मैं उड़कर श्रीअंग से लिपट जाऊँगी
तुम्हारे कोमल अंगों को छूकर
महक महक जाऊँगी
तुम्हारे अधरों को छूकर
हृदय में उतर जाऊँगी
नासिका से छू
श्वास श्वास में घुल जाऊँगी
गुस्ताख हूँ इश्क-ए-जुनू में
मस्तक पे जा सजुंगी
आँखों में जो छू जाऊँ
तब भी तुम मुस्करा देना
करने देना थोड़ी मनमानी
फिर चाहे बहा देना इक जल बिन्दु से
मैं बह कर तुम्हें छू तो जाऊँगी
हे कृष्ण
देना तब एक ऐसी थाप
प्रेम से सना तुफान हो जाऊँगी
छा जाऊँगी सर्वत्र जग में
तेरे प्रेम का पैगाम बन
कण कण में भर जाऊँगी
महक तेरी राधा की श्वासों में ले
पूरे ब्रह्मांड में छा जाऊंगी
प्रेम ही प्रेम बन जग में
नफरतों की आंधियों से लड़ जाऊँगी
तेरे प्रेमदेव और राधे के सौंदर्य अपार
से हर एक हृदय को रसपूरित कर आऊँगी
श्याम घन बन बरस जाना तुम
मुझे कर देना तुम शांत हरि
मिट्टी की ही हूँ बनी
महक महक जाऊँगी
तेरे प्रेम मेघ से भीग जाऊँगी
तब तुम कुंज निकुजों में
मुझको देना ठहराव हरि
सूर्य की किरण बन
देना तू मुझे ताप हरि
मैं फिर नवचेतना सी
राआआआआआआआआआआधा
राआआआआआआधा गाऊँगी
तेरी प्रेम भक्ति का रस सर्वत्र घोल आऊँगी
श्याम श्याम श्यामा गाती
धरा और अम्बर को छू
फिर फिर तेरे चरणों की धूल बन जाऊंगी
"तू पंख लगा दे श्याम मुझे
अभी व्रज में उड़ आऊं
बरसाना वृषभान दुलारी
जाकी ऊँची बनी अटारी
राधा रानी के कर दर्शन
जीवन को सफल बनाऊं
वृन्दावन में बाँके बिहारी
राधा वल्लभ झांकी प्यारी
देखकर रूप छठा में
मंद मंद मुस्कराऊं
जो तुमने मन की आस बुझाओ
व्रज वृन्दावन में मुझे बसाओ
आठो याम सेवा करूँ ये
तुझपे मैं बलि बलि जाऊँ ।।"
हे कान्हा, प्रेम की बरसात हो, साथ मे तेरा साथ हो।
भीग जाऊ मै तेरे प्रेम में, बस हाथ मे तेरा हाथ हो।
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