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"जिन्दगी के रूप में दो घूंट मिले , सलोनी जी

"जिन्दगी के रूप में दो घूंट मिले
इक तेरे इश्क का पी चुके हैं
दूसरा तेरी जुदाई का पी रहे हैं"

एहसास तेरे होने का है
पर दिल को मनांऊ कैसे
गर दिल में रहते हो तुम
नजरों को दिखांऊ कैसे

रखता है मुझे थाम के मेरा साँवरा गिरने नहीं देता
मैं टूट भी जाऊँ तो बिखरने नहीं देता
इस डर से कहीं काँटा न चुभ जाए मेरे हाथ में वो फूल भी मुझे थामने नहीं देता

परेशां दिल गुलिस्तां बहारों में नहीं लगता
नुमाईश में नहीं लगता नज़ारों में नहीं लगता
बता दो ऐ मेरे दिलबर कहां ले जाऊँ इसको
अकेले में नहीं लगता हजारों में नहीं लगता

एक तेरे सिवा अब जन्नत की भी आस नहीं
बस एक तू मिल जाए
इससे बड़ी कोई प्यास नहीं
सुहाना मौसम और हवा में नमी होगी
आंसुओ की बहती नदी होगी
मिलना तो हम तब भी चाहेंगे आपसे मोहन
जब आपके पास वक्त और
हमारे पास सांसों की कमी होगी

आप से प्रेम करती हूँ
अब याद कुछ और रहता नहीं
एक बस आपकी याद आने के बाद
याद आने से पहले चले आईए
और फिर चले जाइए जान जाने के बाद

मोहन हर बार आगाज़-ए-महोब्बत हूँ करती
अंजाम-ए-महोब्बत के बाद
आप आकर यूँ न जाइए कि
अब जां नहीं निकलती लाख मनाने के बाद

लिखती रहती हूँ अलफाज़-ए-महोब्बत
तेरी याद में खो जाने के बाद
कागज़ कलम इल्म भी नहीं
बस दिल-ए-आबाद तुझसे होने के बाद

मेरे कान्हा
हिफाज़त नहीं होती हमसे अब इस दिल की
इसने मान लिया है तुम्हें अपना सबसे जुदा होने के बाद
जी तो रहे हैं हम जैसे तैसे
पर ज़िंदगी तनहा लगती है अब
तेरा होने के बाद

तेरी मस्त नज़र ने छेड़ा है
अब दर्द-ए-जिगर का क्या होगा
जो ज़ख्म बना हो मरहम से
उस ज़ख्म का मरहम क्या होगा
पर्दा तो अभी सरका ही नहीं
बेचैन है दिल फिर क्यों इतना
जब मिल कर निगाहें बिछुड़ेंगी
उस वक्त का आलम क्या होगा

"ऐ कान्हा....
उदास हूँ पर तुझसे नाराज़ नहीं
तेरे दिल में हूँ पर तेरे पास नहीं
झूठ कहूँ तो सब कुछ है मेरे पास
और सच कहूँ तो तेरे सिवा कुछ नहीं"

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