"एक ख्वाब सा बन कर
रह गई है महोब्बत मेरी
एक वहम सा है कि
तुम मेरे साथ ही हो"
और ये वहम ही मुझे
इतना प्यारा है पिया रे
कि ख्वाब-ओ-ख्याल से
महोब्बत हो गई है मुझे
आज फिर कुछ खोने को है
आज फिर लम्हें सोने को हैं
आगाज़-ए-महोब्बत में
अंजाम का क्या सोचना
आज फिर हम खुद से
जुदा होने को हैं
यार हम उनसे दिल लगा बैठे
जो गुम हैं और
हम भी गुमशुदा होने को हैं
शुमार हुए हम इश्क में यूँ
कि अब तड़पके बेशुमार होने को है
तन्हा ही सही सखी
अब उनके तलबगार होना तो है
इश्क-ए-जुनूं में जुदाई
सही तो नहीं जाती
पर फिर एक बार सबसे
जुदा होना तो है
आए तो थे हम प्रेम जताने
अब प्रेम से प्रेम होना तो है
जाने कहाँ जाएंगे
पर अलविदा कह कर
रूख्सत-ए-महफिल होना तो है
महोब्बत में यही तो नहीं मंजिल
कि आज फिर से फना होना तो है
जिंदगी के हर मोड़ पर मिलेंगे यूहीं
पर राह-ए-गुज़र होना तो है
मिल कर बिछड़ते रहेंगे सभी
सफर-ए-तन्हाई में रोना तो है
होसला फिर भी है
कि संग उनके हैं
जिनके हमें होना तो है
इल्तजा है बस अब इतनी
कि खो जाएं अब कुछ यूँ
कि गुमशुदा की तलाश न हो
अब उजालों में गुम होना तो है
"तेरी महोब्बत में आगाज़ भी वही
और अंजाम भी वही
पहले जल रही थी मैं
अब सुलग रही हूँ"
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