यदि भजन में अभी ही लगे हो तो संभव है कि भजन में तत्क्षण ही रस न मिले और फ़िर इसे छोड़कर यत्र-तत्र भटकने लगो किन्तु जैसे-जैसे नाम-रस में/भजन में विश्वास दृढ़ होता जायेगा, वैसे-वैसे ही आनन्द आता जायेगा और रस की उत्पत्ति होने लगेगी किन्तु रस के वास्तविक स्वरुप का बोध तो उनकी कृपा से ही संभव है। यही आसन्न सिद्धावस्था है। इस अवस्था में भक्त, भजन को छोड़ ही नहीं सकता वरन भजन अब भक्त को पकड़ लेता है। रस आनन्द की अपेक्षा अति सूक्ष्म है। आनन्द का अनुभव तो बहुतों को हो जाता है किन्तु रसोत्पत्ति तो श्रीकिशोरीजी की कृपा से बिरलों को ही उपलब्ध होती है। रस-अदृष्ट तथा अनुभवगम्य होता है।
जय जय श्री राधे !
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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