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लीला दर्शन आँचल जी

कल संध्या को जब एक सखी राधे से मिलने गयी,तो वो तो श्रृंगार कर रही थी,उसे श्याम ने पकड लिया....बोले मेरा एक काम कर,
सखी को संदेह हुआ पर बोली क्या,वो बडे दीन हो लगभग हाथ जोडते से बोले तू राधे की चरण सेवा करती है न....सखी बोली,तो...तू एक दिन को मोहे वो सेवा दे दे,अरे..पर तुम,राधे न चाहवेगी ऐसा...
सखी बोली,तो...तू एक दिन को मोहे वो सेवा दे दे,अरे..पर तुम,राधे न चाहवेगी ऐसा....
सखी तो तू ऐसा कर मुझे अभी अपनी सखी बना राधा से मिला,मै बिनती कर लूगा....न,न ये मुझसे न होगा...वो पहचान जावेगी पल मे...न री,न पहचानेगी,वो अधीर होने लगे,बोले तुझे राधे की सौ,मेरी सौ...ले चल न.....वो पहले से ही उस सखी के वस्त्र ,श्रृंगार धारण किये थे,घूंघट कर चले राधे पास......
वहा पहुच सखी बोली,राधे ये मेरी एक सखी है,तुमसे बात करना चाहती है,राधे अति सरला,बडे प्रेम से बोली कह न,सखी बने श्याम बोले,राधे,मेरी सखी आपकी बहुत प्रशंसा करती रहती थी,तो मेरा मन भी दरश को हुआ.....
यहा आकर आपको देखा तो वो सारी प्रशंसा बहुत कम लगी...राधे कुछ लजाती सी बोली,ये सखी भी न,यू ही मेरी प्रशंसा करती रहती है....तब श्याम बोले,राधेजु,आपसे एक निवेदन करू,राधे बोली कहो न सखी,....
श्याम बोले,ये मेरी सखी बतायी की इसे इन चरणो की सेवा मिली है,आपके दरश कर मेरा मन भी उस सेवा को अधीर हो रहा है,क्या केवल एक रात्री के लिए आप वो सेवा देगी दासी को.....
राधे ने सहज स्वीकार कर ली,अब वो सखी जाने लगी,तो राधे ने प्यारी सखी को रोक लिया,श्याम चले गये...राधे और सखी के बीच कुछ लाड भरी बाते हुई...
जब वह सखी बाहर आयी तो श्याम वही खडे थे,पास आ बोले,तूने बडी कृपा की री,सखी बोली..पर रात्री मे क्या होगा,चरण सेवा तो युगल की होती है न,तुम सखी होओगे तो श्याम कहा से आवेगे,वो बोले मैने सब सोच लिया,तू श्याम बन जाना...सखी तो मानो जड हो गई इतना ही कही..मै, वो बोले हाँ तू,पर मै श्याम कैसे,राधे पहचान लेगी,नही पहचानेगी री...मुझे वेश बदलना आता है,मै तुझे श्याम बना दूंगा...पर तुम्हारा ह्रदय,वो स्पर्श कहा से पावूगी,वो पहचान लेगी...देख सखी,मै तेरे ह्रदय मे हू ही न....हा हो,तो...मै तेरे ह्रदय को अपना ह्रदय कर दूगा....वो न पहचानेगी...सखी फस गयी,न मना कर पा रही न ही करने का साहस...पर चलो वो तैय्यार हो गयी,श्याम ने कहा यदि पता चल भी गया तो मै संभाल लूंगा....ठीक है....
यू ही बडी उहा पोह मे रात्री आयी....जैसे ही सखी कुंज मे पहुची,श्याम तैय्यार खडे थे,....
उन्होने सखी को ले जाकर श्याम बना दिया...कोई न पहचान सकता था की ये कौन है.....श्याम सखी बन,और सखी श्याम बन चले निकुंज मे....देखते ही राधे बोली श्याम,श्याम तुम कहा थे....वो पास आने लगी,तभी राधे ने श्याम बनी सखी को स्पर्श किया,वही श्याम ने भी उसे स्पर्श किया तो राधे को श्याम का ही स्पर्श अनुभव हुआ....राधेश्याम शैय्या पर बैठ गए....सखी बने श्याम दोनो की चरण सेवा करने लगे...तभी सहसा...वो श्याम बनी हुई सखी के नैनो से अश्रुप्रवाह होने लगा...श्रीजु व्याकुल हो गयी,उस सखी के ह्रदय मे वही भाव उत्पन्न हो गये जो श्याम के ह्रदय मे होते है....वो रोते रोते अधीर हो,कातर स्वर से कहने लगी,राधे,राधे....तुम मुझे स्वयं मे समा लो न....राधे,मुझसे कभी विलग न होना,यू रोता देख राधे ने उसे ह्रदय से चिपटा लिया,वो सब समझ चुकी थी...पर तब भी बोली....ये तुम्हे क्या हो गया,मै तो यही हू....पर वो श्याम बनी सखी,रो रोकर कहने लगी....तुम मुझसे कभी दूर न जाना राधे,राधे मुझे खुद मे समा लो न,राधे,राधे,राधे....तब राधे सखी बने श्याम से बोली,ये तुमने क्या कर दिया श्याम,मेरी प्यारी सखी की क्या दशा कर दी....श्याम सखी वेश से बाहर आ गये,सखी का भी वो वेश जाने कहा खो गया....श्याम शैय्या पर विराजे,पुनः वो सखा चरण सेवा करने लगी...श्यामाश्याम वार्ता मे तल्लीन हुए.....

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