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आओ न , आओ चले आओ मोहन , सत्यजीत तृषित

रखना मेरा ख़याल अब उम्र भर के लिए
लो मैंने अपने आप को तेरी अमानत कर दिया

आओ न
आओ चले आओ मोहन
देखो दिल बेचैन हो रहा
रूह है जो तुम्हें पुकार रही
जब हो चुके हम एक
तो फिर क्यों दरमियां
ये भेद रहा
तुम ज़िंदगी मेरी
मैं जां तुम्हारी
तुम हो प्रेम तो
मैं प्यास तुम्हारी
भले ही बुझे न कभी
पर पल पल हर पल
है आने की आस तुम्हारी
आ जाओ
आओ न
यूँ अब हमें तड़पओ न
देखो
धड़कन है बढ़ रही
मन में तेरे प्रेम की कसक
दीवानी तेरी बहक रही
अब पल न देर करो
कि अब तपन बढ़ रही
तेरा प्रेम पाने की खातिर
दीवानी हद से गुज़र गई
रह न पाते दूर तुम भी
या मेरे चाहने में रही
बाकी कसर अभी
प्रेम भी इतना करते हो
फिर क्यों हैं अधूरे अरमां अभी
आ जाओ
आओ कि हम रहे हैं
तेरा पथ पलक बिछा निहार अभी
जहाँ से कभी मिटे नहीं
तेरे चरणों के निशां कभी
मेरे मन पर हैं तेरे इश्क के
गहरे निशां भी
क्यों रूलाते हो
क्यों यूँ तड़पाते हो
आ जाओ
आओ अब करो
अपने प्रेम की बरसात ही

कुछ ज्यादा ही सोच रही हूं
कुछ ज्यादा ही तुझमें गुम हूं
थोड़ी सी ही मुझमें मैं हूं
थोड़ा सा ज्यादा मैं तुम हूं

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