भाग-2
हाँ,फिर भी ये बेचैनी क्यों?
अरी बेचैन तो होना ही होगा ना।नहीं तो मिलन संभव ही नहीं और इस लिए भी कि फिर से मदमस्त हो जाऊँ तो रस क्षेत्र की राह ही न भूल जाए।प्रिया जु की पायल की रूनझुन और हंसी की जो संगीतमय ध्वनि है वो जो मुग्ध कर रही है मदहोश कर रही है सतर्क रहना होगा।
इतने में सब सखियों संग प्रिया जु नज़र आने लगती हैं अकेली हैं प्रियतम कहाँ हैं जहाँ प्रिया वहीं मोहन तो आते ही होंगे।जैसे जैसे किशोरी जु पास आ रही हैं वैसे वैसे उनकी छुअन से हवा में सुगंधित कण घुल रहे हैं जो हर एक श्वास के साथ मुझमें समाते जा रहे हैं और बेकाबू होती जा रही हूँ नहीं रोक पाती हूँ ,खो ही गई फिर से।पड़ी हूँ मदहोश सी धरा पर।न जागी न सोई ।
अरे,पर ये क्या,बेहोशी में भी होश।।
ये तो अचानक से उठ खड़ी हुई। रस क्षेत्र की एक किंकरी है ये तो।आकर प्रिया जु की राह ताकते तकते कंकर उठाने लगी कि कहीं सुकोमल राधे जु के पग में ना चुभ जाएं।चुग रही है राह के एक एक कांटे को भी ताकि किसी भी सखी के पैर में न लग जाए।मतवाली हुई भूल ही बैठी है अपने असली स्वरूप को।
श्यामा जु के आगे आते कदमों की आहट से ये राह से हट जाती है।नज़र न पड़ जाए कहीं तुच्छ दासी पर किसी की भी मुख छुपाने की आड़ में फिर से वही खोई सी अदना सी हो गई।
पर अब पूर्ण होश में।पता है क्यों?
क्योंकि ज्यों ज्यों सखियां प्रिया जु को ले आगे बढ़ रही हैं त्यों त्यों एक सुंदर मनमोहक नवीन रस क्षेत्र का स्वत्: ही निर्माण होने लगा है जिसे देख उसका रोम रोम रोमांचित हो रहा है और वो मंत्रमुग्ध सी लाडली जी को तो कभी वन की सुंदरता को शांतचित्त निहारती जा रही है।जहाँ अभी बड़े बड़े पेड़ उसे दिख रहे थे वहाँ सुंदर सुंदर पुष्पाविंत महके हुए मनमोहक लताओं युक्त कई पेड़ हैं जो श्रृंख्लाओं में पवन के साथ झूम झूम कर पक्षियों को निमंत्रण दे रहे हों कि आओ प्रिया जु का सुस्वागत्म करें।धीरे धीरे सब तरफ सखियों की चहल पहल ,पक्षियोंकी चहचहाहट,व भंवरों की समधुर ध्वनि से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा।
अनुरूप माहौल में तो जैसे अब इसको चाव ही चढ़ा हो।सब और भाग भाग कर अपनी सहचरणियों को पुकारने लगती है।आदेशानुसार सब मिल अपने नन्हे नन्हे हाथों से पुष्प एकत्रित कर श्यामा जी की राह में सजाने लगती हैं।द्वार से लेकर प्रिया जु के आसीन होने की वेदी तक कई रंग बिरंगे फूल ही फूल बिछे हैं जिनकी महक स्वामिनी की महक से मिल कर सम्पूर्ण ब्रह्मांड को महका रही हो।और ये तो पगला ही गई हो जैसे।इसे जो ऐसे भव्य रस क्षेत्र में प्रवेश मिला।ये खुद ही न समझ पाती है कि ये पहले भी कभी यहीं की ही थी या आज ही पहली बार आई है।
क्रमशः
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