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हाए पिया क्यों छिटकाया , सलोनी जी

बनके माला प्रेम की प्यारे ! मैं तेरे तन पे झर-झर जाऊँ !
बैठूँ नैय्या तेरे प्रीत की मोहन ! इस संसार से तर जाऊँ मैं बस तुझमें ही गुम हो जाऊं  

हाए पिया
क्यों छिटकाया
बाधा बनी
तेरी ही दी ये काया

का करूँ कासे कहुं
प्रेम रोग जो लगाया
काबिल न सही
पर तुझसे हर भेद है मिटाया
सदेह भेजा इस जग में
दोष इक यही पिया पाया

होती घुंघरू तेरी पायल का
थिरकती रूनझुन तुम संग
होती करधनी तुम्हारी
तो ठुमकती झूमझूम हर दम
बनादो मुझे हाथ का कंगन
छूती रहुं तुझे अनवरत
हो जाऊँ गर हार तेरा
लगी रहुं सदा तेरे कंठ
करलो मुझे तुम कुंडल अपने
कानों में गूँजती रहुं मधुर ध्वनि बन
चंदन बन मैं लगुं तेरे तन
तप में तेरे तपुं दूं तुझे ठंडक
केसर बन छू लूं मस्तक
महको तुम महकादो मुझे भी
बनालो मुझे तुम ज़ुल्फ अपनी
चूमुं गुस्ताख बन तेरा मुख कमल
चाहो तो मुझे बंसी बनादो
बजती रहुं मधुर मधुर
अपनी आँखों का काजल करदो
बसी रहुं सदा तेरी सुखद नज़र
अपने होंठों की लाली करदो
पीने को तेरा अ-धरा अमृत

देखो पिया कुछ भी करदो
रहना बस अब सदा तुम संग
ऐसा करो पिया किंचित एहसास करदो
रमुं सदा राधा के तन मन
हंसी बन खिलुं
आंसु बन बहुं
जो तू चाहे
जैसे सुख माने
वैसी ही तूम मुझे करदो
अपने मुख की वाणी करदो
रटुं राधा ही राधा सदा
पिया बांसुरी की धुन ही करदो
नाच उठुं अराध्या के संग
मुझे अपनी श्वास करदो
आती जाती रहूँ बाहर भीतर
मिलन की ऐसी डोरी बांधो
कट जाएँ सारे धरा के बंधन

मुझमें मेरा मैं न रहे
तू तुम तेरे में रहूँ
मेरी रूह को अपनी करदो
देह प्राण के भेद मिटाकर
पिया बस नेह स्नेह करदो
यहीं मानो बहती हूँ पल पल
विरह वेदना सहना मुश्किल
चाहूं अब जाना सदेह पिघल

हे राधे
अपनी दासी रख लो
जैसी तुम चाहो बस वैसी कर लो
ऐसी कि तेरे पिया के मन भाऊँ
मुझे अपना कर तुम
अपनी सी करदो
कभी न बिछड़ूं
पिया ही पिया की करदो

लगन लागी कान्हा तेरे चरणों से
जो मैं होती मोर का पंखा,
तो सजके रहती कान्हा तेरे मुकुट में ||
जो मैं होती काली कमरिया ,
लिपटी रहती कान्हा तोरे अंगो से।|
जो मैं होती कान्हा बांसुरिया,
तो लगी रहती कान्हा तेरे अधरों से ||
जो मैं होती कान्हा ब्रिज की छोरी ,
तो संग रहती कान्हा तेरी सखियों के||
जो मैं होती कान्हा ब्रज की माटी।।
लिपटी रहती कान्हा तेरे चरणों से ||

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