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निकुँज गिलहरी भाग 6

भाग-6

समझ नहीं आ रहा यहाँ देखुं या वहाँ।चंचल मन हर और भाग रहा है।सब देखना चाहता है।इधर प्रिया जु जो वेणु धुन में मुग्ध हुईं शीघ्र अति शीघ्र श्रृंगार पूर्ण हो जाए ऐसा चाहती हैं उधर कृष्ण के आगमन से पूर्व वंशी का मधुर राग आकर्षित कर रहा है और अब ये
ये आखिर हो क्या रहा है वहाँ तनिक चल कर देखना तो होगा ही अन्यथा ये बेचैन मन में अचकची सी ही रहेगी।
आहा।।
अरी ये तो मैं पगली भूल ही बैठी थी।वैशाख माह है ना।तो चंदनयुक्त श्रृंगार तभी तो हो रहा।हर और चंदन ही बिछा और महका रहा है निकुंज को।और ये यहां एक मोहक नोका।
हाँ नोका ही तो है।अरी आज तो प्रियाप्रियतम को जलविहार कराने की तैयारियाँ हो रही हैं।
अरे वाह!क्या नाव सजी है।अत्यंत रंग बिरंगे पुष्पों से लदी है।महक ऐसी कि पूरी यमुना इठला उठी है।तरह तरह की लताएं कलियों की मनभावनी लड़ियां जब यमुना जु के जल को स्पर्श करती हैं तो परस्पर इठलाती  हैं।प्रिया प्रियतम के आगमन में पवन को महकाती हैं।
थोड़ा और पास गई तो सब सखियां सजावट में लगी हैं।
एक विशाल नोका बत्तख मुंही ऊंची बड़ी सुंदर साज सजावट जिस पर सखियां पूरे तन मन से सर्वस्व न्यौछावर कर रही हैं।नोका के एक तरफ एक पुष्पों से लदा झूला है जिसकी रस्सियां फूलों की लड़ियों व लताओं से नरम नरम सजी हैं।पूरी की पूरी नोका भीतर बाहर से भिन्न भिन्न महकते पुष्पों से सजी है पूरे धरातल पर फूल ही फूल बिखरे हैं जिन्हें सखियां यूँ सहेज रही हैं जैसे ये नाजुक फूल न होकर उनके हृदय के भाव ही हों।एक एक सखी के मुख की आभा मुस्कन मन मोह लेने वाली है।सब की सब प्रियाप्रियतम प्रेम से बंधी सराबोर आँखों से प्रेम ही प्रेम छलकाती हैं जिससे पुष्प भी ललायित आनंदित हो रहे हैं।पूरा वातावरण अद्भुत महक बिखेर रहा है जिसमें मुझ जैसे कई तुच्छ जीव भी बिना किसी स्पर्श के भी मंत्रमुग्ध से निकुंज में स्वतंत्र झूम घूम रहे हैं।ये भी तो प्रियाप्रियतम की असीम कृपा ही तो है।

प्रिया।।हाँ प्रिया जु
अरी उनके पायल नूपुर की चूड़ियों की खनक जैसे पुकार रही है खींच रही उनकी और।और श्यामसुंदर की बांसुरी की धुन।आहा।जैसे मिलन की वो घड़ी सनिकटतम है।चूक न जाए कहीं वो मधुर अति सुमधुर क्षण ये सोच तीव्र गति से भाग पड़ती हूँ रूकते ही नहीं कदम कहीं।
प्रिया जु इतनी सुंदर लग रही हैं कि क्या कहुं शब्द ही नहीं क्या उपमा दूँ बस यही कि उन्हें देख मेरी ये हालत है तो प्रियतम ♡♡♡♡ हाए।।अद्भुत छटा।।अब तो मन बेचैन है कि वो भी शीघ्रता से प्रकट ही हो जाएँ कहीं से भी।प्रियतमा भी अपनी व्याकुलता अधीरता को भीतर छुपाए हुए हैं कि उनकी मुस्कान और मंद हंसी की मधुर ध्वनि से उनका श्रृंगार ज्यों जीवंत हुआ जा रहा हो।उनके केश केशों की घुंघराली लट उनके झिलमिलाते कर्णफूल माथे पर दमकती लालसुर्ख चंदनकृत बिंदिया मांगटिक्का उनकी नासिका की नथ गुस्ताख उनके अधरों से छूती बार बार अधररस का आस्वादन करती इतरा रही हो जैसे।उनके वक्ष् पर अनगिनत मनमोहक हीरों जड़ित हार छुअन से पुल्कायमान हो गौरव पा रहे।करधनी ज्यों पतली सी कमर पर पतली से छलकती छनकती चाँदी की रेख हो जैसे सुवर्ण तन पर।हाथों की चूड़ियां कंगन संगीत की ध्वनियां हों जैसे।नूपुर पायल ताल से ताल मिला जैसे नृत्य ही कर रहे हों।मेहंदी की महक और पैरों तले चंदनयुक्त अलता पूरी धरा को एक अंजानी सी अद्भुत महक प्रदान कर रहा है जिससे छरा भी स्थिर ना है।सखियों की पगध्वनि व थाप उसे भी नृत्यांगना ही कर रही हो जैसे।पूरा निकुंज ही नाच गाने की परिध्वनियों से सराबोर।
सोच रही हूँ कि अभी तो धरा धाम के नायक का आगमन नहीं हुआ तब तो वातावरण और भी मस्ती भरा होने वाला है।
ये सोचते सोचते मैं भी सखियों के यूथ में खुद को शामिल पाती हूँ।प्रिया जु को मोरपंखा झलते हुए उनके ठीक पीछे।सखियां उन्हें वेणुगुंथन के बाद काजल की धार बनाने में व्यस्त हैं जो उनके मुताबिक श्रृंगार को पूर्ण कर देने वाला आखिरी और मनमोहक कार्य है जिससे श्यामा जु अपने श्याम को अखियों में समाया जान इंतजार की घड़ी का अंत आया मान हर्षा जाती हैं।
पर ये क्या मुझे क्यों अभी भी कुछ कमी लग रही है!!ये सोच मैं पंखा अपनी एक सखी को थमा पुष्प खोजने लगती हूँ जो सब एक ही रंग के सफेद मोगरे के ताज़ा महकते और नवखिलित नरम छोटी छोटी कलियां ही हों।उन्हें ढूँढ मैंने भिन्न भिन्न छः लड़ियों में पिरो कर ऊपर से एक ही तार में बांध दिया है।कुछ पुष्प अभी भी शेष हैं जिनसे एक सुंदर गले से नाभि तक ही एक माला का निर्माण किया और दौड़ी प्रिया जु की और।
अचंभित प्रिया जु तो खुद उठ भागती हैं जैसे कुछ चुंबकिय सा उन्हें अपनी और खींच ही रहा हो।सब सखियां तो जानती ही हैं कि वे आ गए हैं जिनका कब से सबको इंतजार था।मैं भी भागती हूँ उस मधुर मिलन को देखने।आहा।।
क्रमशः

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