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लीलादर्शन सलोनी 2

"आओ श्याम
मेरे दामन से लिपट जाओ नसीम-ए-सुब्ह बन के
शर्म आती है आँचल न उड़ाओ  शोख हवा बन के"

एक सुंदर सुबह का आगमन
हल्की महकी सी मदमस्त पवन
पेड़ों की ताज़ा ताज़ा पत्तियों की सरसराहट
नन्ही नन्ही चिड़ियों की मधुर मधुर गुनगुनाहट
कल कल करता यमुना जल का सरस संगीत
अद्भुत दमकती सूर्य किरणों का अर्धखिली कलियों पर प्रेम भरा मसाज
खूबसूरत पुष्पों पर ललचायित भंवरों का ब्रह्म नाद
हरी पीली मखमली घास पर चमकते लहराते सुनहरे तृण
कुंजन कुंजन बहती मीठी मीठी संगीत लहरें
अवचेतन मन में चेतन सुमधुर पुष्पाविंत सुगंधित दिव्य निकुंज का पारलौकिक श्रंगार
सुषुप्ति में डूबा ये तन प्राण
मन भर रहा नृत्यिका रूह के संग प्रेम भरी उड़ान
छाया है हर दिशा में रूहानी एहसास
उन्मादित मन अल्लाहदित रूह की परम सुघड़ अति सुंदर प्रेमपुरित ऊंची उड़ान
कोई कल्पना नहीं
हुआ आज सच में अंबर धरा का ज्यों स्नेह मिलान

अहा~~~~
कौन आया होगा यहाँ आज जो कर गया प्रेम भरे महकते दिन का आगाज़
प्रेम ~~~~अरी प्रेम का नाम आते ही जग के नित्य मिलित प्रेमियों राधा माधव का उच्चारण इस प्रेम लोभी मन में सहज ही आ जाता है।चाँद की चाँदनी में बिताई युगल की सम्मोहक रात्रि के बाद जब महकती सुबह होती है तो ये चंचल मन चल पड़ता है ढूँढने प्रियाप्रियतम के कोमल पगों के अनछुये निशां।

कहाँ ~~~~कहाँ होगा वो नवकिशोर दमपति जोड़ा जो बंधा होगा एक अजब प्रेम डोर से जिनको छू कर ये इठलाती पवन कर आती समग्र जगत में प्यार का प्यारा प्रचार प्रसार।आज इतना शांत तन मन कि न कर रही उनकी पायल शोर न आ रही हंसी ठिठोली की आवाज।कहाँ ~~~~कहाँ हैं वे।

सघन निकुंज के बीचोबीच सुंदर बाग में कोई चमकती दमकती रौशनी का दिव्य अति दिव्य फैला रहा है चंचल मुखरित प्रकाश।यहां दोनों वो विहर रहे ले कर में कर।कर रहे अटकेलियां अपार कि अचानक रूके हैं उनके कदम कदम्ब की छांव तले।निहार रहे दोनों ऐसे जैसे निहार रहे हों पहली बार।देख प्रिया की आँखों में पढ़ रहे मोहन उनके दिल की बात।एक कर से थाम वो प्रिया को भर रहे हैं अपनी बाहु में और दूसरे कर से वो छेड़ते हैं इक प्यारी मधुर वेणु की तान।सुन जिसे हो रहा श्यामा को सम्मोहन अपार।पहले तो वो निहार रहीं सुन रहीं वंशी की मधुर तान फिर देने लगीं धुन में खोई मोहन को प्रेम भरा गहन आलिंगन।ज्यों ज्यों श्यामसुंदर बढ़ाते जाते वेणु का तीव्र निनाद श्यामा त्यों त्यों करती जाती प्रेमालिंगन प्रगाढ़।

यूँ लिपटे लिपटे ना जाने होता नहीं उन्हें  समय का ना किसी के आगमन का आभास।वो दोनों ही खोए हैं इक दूजे में हटता ही नहीं उनका तनिक सा भी खुद का खुद से ध्यान।प्रिया लुटातीं जातीं अपना नेह श्याम पर कि इक नज़र पड़ती उनकी वंशी पर जो छू रही है कान्हा के रसीले अधर।प्रिया उसी क्षण हटा देती हैं बांसुरी को और छू लेती उंगलियों से श्याम के अधर।श्याम चाह रहे दें श्यामा को गहरा आलिंगन पर ये क्या वो तो निहारने लगे श्यामा के मदमस्त नयन।विशाल बाहों में भर वो दे रहे नीलवर्ण वक्ष् से राधे को सहारा अनवरत।श्यामा मंद मंद मुस्काती धीरे धीरे देख लेतीं श्याम का मुखकमल।श्याम अब छू लेते हैं राधा के गुलाबी कुपोलों पर और चूम लेते उनके माथे पर।जिससे श्यामा हो उठतीं हैं कुछ विकल वो देतीं हैं श्याम को अधर से अधर स्पर्श ज़रा ऊपर उठकर और भर लेतीं श्याम को अंक में गलबहियां डाल।श्याम अब जान श्यामा का हाल उठा लेते हैं उन्हें अपनी भुजाओं में और ले जा बिठाते कदम्ब की गहन छांव तले।जहाँ बनाया है सखियों ने एक पुष्पों से सजा झूला जिसपे बैठें प्रियालाल।

श्याम श्यामा झूले पर विराजते हैं पहले तो कान्हा हल्के से झुलाते हैं कि श्यामा को एहसास भी ना होता वो श्यामसुंदर की गोद में श्याम को ही पकड़े बैठी हैं।उन्होंने झूले की तान को भी ना पकड़ा है।लेकिन श्यामसुंदर की मतवाली चित्तवन~~~~कब तक ना होते मतवारे नयन।
लो जी~~~~एक दम से हवा के रूख को काटते हुए बना ही दिया झूले को उड़न खटोला।श्यामा जो अब तक तो थीं खोई सी अब है उनकी सुध खोई सी।जैसे ही ऊपर से नीचे नीचे से ऊपर बढ़ा झूले का वेग किशोरी जु ने छोड़ा प्रियतम को और पकड़ा झूले के नरम पुष्पाविंत रस्सी को।उनके होश ही उड़ गए।श्यामसुंदर को हंसते देख श्यामा जु भीतर तो मुस्काए रहीं और ऊपर ऊपर से कान्हा को मान कर कर दिखाए रहीं।चाहती तो हैं झूला ना रूके कभी पर सांवरे को तनिक फिटकार लगा रहीं।आनंद में डूबे युगलवर कभी ऊपर तो कभी नीचे देर तक रहे सांसों से सांसें मिलाते।कभी आँखों से आँखें तो कभी अधर रस पिलाते तो कभी वक्ष् को वक्ष् से सहला रहे।यूँ धीरे धीरे रस पीते पिलाते मोहन झूले को धीमा धीमा और धीमा कर रोक दिए।देख श्यामा को श्रमित उन्होंने गोद में फिर से उठाए के कदम्ब तले शय्या पर प्यार से बैठा दिया।लगे वो श्यामा के रोम रोम को छूने कहीं हाथों से तो कहीं अधरों से सहला रहे।श्यामा जु की उठती बैठती आहों को वो शांत करते कभी उन्हें थाम रहे।कब तक ना जाने ये दीवाने इक दूजे को प्रेम सुधारस पिलाते रहे।
अरे धत्त~~~~ इतने में सखियों के आने का शोरगुल सुन दोनों होश संभाल रहे कि श्यामा बोलीं~~~~
चलो ना हम कहीं छुप जाएँ
श्याम ने झुकाया कदम्ब की डार को दोनों मेरे अंतर्मन में अंतरध्यान हो गए।सब सखियां ढूँढ ढूँढ हारी पर राधा मोहन तो दो से एक हो गए।

"साँवरे के देखे बन परत न चैन।
छिन छिन मन अकुलात सखी री, रूप के प्यासे नैन।
वह शोभा वह मन्द हँसन वर, वह तिरछी दृग सैन।
'नारायण' करि गयो बावरी, मधुर सुनाय के बैन।।"

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