मुझे जाना था उसकी गली
उससे मिलने की थी आरज़ू
उन गलियों की महक
और उसकी महक दोनों एक थी
संग वहीँ लिए जा रहा था
रथ सारथ वहीँ ,
और पहुँचने पर दीदार भी
वहीँ ख़ुद का किये जा रहा था
जब लौटा तब लगा
मैं उससे कब मिला ?
वहीँ खुद से लिपट
खुद मुस्कुराया उधर
ख़ुद रो भी लिया इधर
उसे खेलना था सो वह बह गया
अब वहीँ वहीँ वहीँ है
कैसे दिल सच में करें उससे ईश्क
हर तरफ हर जगह के नूर से
जय जय🙏🏻🙏🏻💐💐
वृंदावन से लौटे हैं
पर 'तृष्त' ही
सच
वो नूर बन हर और छाया है
तुम में मुझ में
सब में वही वही वही नज़र आया है
हैरां हूँ क्या उसने वो धाम बसाया है
जो खुद धाम से बाहर ज़र्रे ज़र्रे
कण कण में समाया है
वो हर प्रेमी हृदय में प्रेम बन कर आया है
जिसने जिसे जैसे अंक लगाया
उसने सच्चे भाव से उसमें
उसी नूर-ए-जहाँ को पाया है
'संग'के होते हुए भी 'तृषा'को बुझाकर और भड़काया है
प्रकृति की रज रज और
हर नर नारी में वो(देखना चाहो तो)रस संचारक होकर रस ग्रहण कर हर कहीं प्रेम धाम उसी ने बसाया है
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