इतना तो बता दीजिये तृषित तुम या हम
लगते नहीँ सबको व्याकुल , तृषित तुम नहीँ तो क्यों है हम
मेरी यें तृषा
मेरी यें रिवायतें
मेरी यें शिकायतें
मेरी यें अतृप्ति
कहते जिसे सब
भक्ति !!!
मेरी यें अन्तः विस्मृति
मेरी यें अनुरक्ति
मेरी यें ललायित दृष्टि
क्या मेरी है ???
कह क्यों नहीँ देते
किसके यह नित्य
आभूषण !!
और यह स्व वस्तु की
विस्मृति ।
यह न होती , तो आपकी
वस्तु क्योँ मेरी प्रतिती !!
सर्व वस्तु आपकी
यह इन्हें भूलने की आदत भी आपकी ।
हे न यह तृषा आपकी मेरे तृषित हिय-पिय !!!
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