"आयेंगे जब कन्हैया, हम द्वार पर तुम्हारे
परदा हटा के रखना, लेंगे हम नज़ारे
बस होंगे केवल हम तुम,और भाव हमारे प्यारे
अश्रुओं में बातें होंगी, भूलेंगे शिकवे सारे....."
अहा।।
आज श्यामा श्याम में डूबी हैं
श्याम संग बैठीं उन्हें निहार निहार न थकतीं हैं
श्याम कहे क्या देख रही हो राधे
क्या पहले कभी देखा नहीं
नहीं मोहन नित्य देखुं ऐसे
जैसे आज ही देखा अभी
तुम नित्य हो दिखते
लेकिन नित्य नव नये ही
नित्य तुम से मिलती हूँ
जैसे पहले कभी मिले ही नहीं
तुम हो नित्य सजते संवरते
मेरी ही आँखों पर जैसे तुम पर्दा कोई
श्याम मुस्करा दिए
और कहा फिर कुछ भी
कैसी बातें करती हो तुम भी
तुम्हें देख ही सजता हूँ
तुम्हें अच्छा लगे सब
ये तुम्हारी सोच को ही मैं ओढ़ लेता हूँ
नित्य नेह लाड लडाती हो
उसी में मैं संवरता हूँ
नित्य तुम जो मिलो मुझमें
इसी मिलन को तो तुम्हारी नज़रों में
जैसे तुम चाहो वैसा ही ढलता हूँ
प्यास जो जगा दी है तुमने मुझमें
पूर्णा बन उसे बुझा दोगी
बस इसलिए लिबास तेरा बनता हूँ
यूँ कह कर श्याम मुस्करा दिए
एक नज़र राधे को देखा तभी
और कहो राधे और अभी और कहो अभी
श्याम अपनी बंसी को निहारने लगे
श्यामा सरकीं और थोड़ा पास हुईं
मोहन ने उनकी मन की इच्छा भांप ली
मिलन रात अभी बीती है
फिर भी राधे में है प्रेम भरे भाव कई
नहीं चाहती वो मोहन से अलगाव अभी
लगालें मोहन उनको कंठ
हृदय में है ये अनकही चाह अभी
मोहन हैं बड़े हठीले राधे की चाहत को
रहे हैं और बढ़ा अभी
कभी देख लेते उनको
कभी लेते नयन चुरा हरि
राधे ने लट सुलझाने को अपना हाथ बढ़ाया
मोहन के मुख को न चूम ले उसने कर कमल से अपने मोहन को छू ही दिया
अब मोहन से न सहा गया
उसने भी राधे के हाथ को वहीं रोक लिया
कमर में हाथ डाल राधा के
उनको नेहपाश में भर ही लिया
राधा हैं अब शर्माई हुईं
मन में हैं तुफान कई
छूटना नहीं चाहती हैं वो मोहन से
फिर भी कर रही मनुहार कई
आहा।।
मोहन ने राधे के मुख पर भंवर बन चूम लिया
राधा हुईं अब बेहाल
करो मोहन और स्नेह और प्यार
मोहन ने राधे को बाहों में अब भर लिया
अधरामृत देकर दोनों ने इक दूजे को निहाल किया
होश नहीं उन्हें अब कुछ
सब सखियन ने देख लिया
सारा का सारा वस्त्र श्रृंगार भोर में ही बिखर गया
लगे हैं दोनों अभी भी अंक
सुबह को भी शर्मसार किया
मोहन चूम रहे राधे की गोरी भुजाओं पर
राधा जी भी बनी हैं उनके गले का हार अब
कब से थे दोनों अलसाये से
अब जैसे हैं कब से बिछड़े
जन्मों के प्रेमी फूलों से खिल कर महके से
देख देख सखियां सब हंसने लगीं
उनके पगलाये प्रेम पर ताने थी कसने लगीं
इतने में वहाँ मनचली प्रिया गजरे लेकर आ गई
देख एकरूप मधुर मिलन श्यामाश्याम का
पगली और पगला गई
सब सखियों को यूँ कह वो मनाने लगी
मत छेड़ो इन मतवालों को
युगल जोड़ी को चलो हम बैठ निहारते हैं
मधुर संगीत गायन से मिलन को मनमोहक बनाते हैं
मान गईं सखियां सब
ताल मृदंग मृदुल बजने लगे
युगल मिलन के क्षण और गहनतम होने लगे
राग रागिनियों के नृत्य से कुंज निकुंज थिरकने लगे
देखते देखते प्रिया भी खुद को रोक न सकी
उसके भी मुख से बोल प्रेम के निकलने लगे
बिन घुंघरू ही उसके पद भी धरा पर झूमने लगे
खूब आनंद बरसा मधुबन में
जब प्रियाप्रियतम अब बंधन से छूटे
पहले तो वो लजाने लगे
फिर देख इक दुजे को मुस्कराने लगे
यहाँ तो किसी को होश ही नहीं
दोनों ये देख खिलखिलाने लगे
मोहन ने इतने में वंशी की धुन छेड़ दी
और हर सखी के पास खड़े बजाने लगे
आँखें मूंद वो प्रिया के पास खड़े
मधुर तान से नाम उसका भी पुकारने लगे
सुन मुरली की धुन यूँ
प्रिया के पद डगमगाने लगे
बहक जाती वो इससे पहले
राधे जु ने आकर उसे थाम लिया
कंठ लगाकर उसे प्यार दिया
मोहन ने भी पगली को स्नेहिल
आलिंगन देकर निहाल किया
इतने पर ही वो तो इठलाने लगी
नित नये मिलन के मंगल गीत गाने लगी
अद्भुत मिलन के पलों को
हर्ष से उसने हृदय में कैद किया
उतार लूं उन क्षणों को पन्नों पर
किसी कलम में इतना जोर नहीं
प्रिया ने मोहन से लफ्जों को ब्यां किया
बलाइयां लेती बलिहार जाऊँ
ऐसा यादगार मंज़र हर सुबह पा जाऊँ
बिन सुहाग की निशानियों के ही
नित नव सुहागिन हो जाऊं
"मेरे कान्हा
तेरे नाम की मैंने तो प्यारे है हल्दी लगाई।
हाथ डारयो पीली पोखर में तो नीर भी पीलो ही देवे दिखाई।
या कारे पीरे के चक्कर में मैं तो गई बौराई।
आजा बाट निहारूँ तेरी साँवरे मैंने की तोसे प्रेम सगाई।"
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