Skip to main content

निकुँज गिलहरी भाग 3

भाग-3

आ गईं।आ गईं।श्यामा जु आ गईं।
मेरी श्यामा जु मेरी----मेर---श्यामा जु----प्यारी श्या ---कहते कहते कंठ भर आया।अश्रु जल बिन्दु से खुद को भिगो रही।अपनी ही देह को जैसे पापमुक्त होने को धो रही हो।कोई पगली सी रसभरी श्यामाश्याम प्रिया।।
देखती है प्रिया जु पधार गई हैं।सब सखियां उनके स्नान की तैयारियों में जुटी हैं और ये मन ही मन सोच ही रही थी कि क्या कैसे कुछ सेवा करूँ कि श्यामा जु की कृपादृष्टि मुझ पर पड़े।बस एक बार वो मुझे देखकर चाहे नज़र ही फेर लें।धीरे धीरे सब सखियों में से गुजरती हुई ये आगे बढ़ने का प्रयास करने लगी है और एक सखी के पल्लु की ओट से प्रिया जु की अंग कांति को एक नज़र देखते ही फिर से इस पर जादू सा होने लगता है कि ये बड़ी मुश्किल से खुद को वहां से बाहर निकाल पाती है।
अरी ।। ऐसा क्या देख लिया।
सखियां जो किशोरी जु को घेरे खड़ी हैं ना
उनके गहने उतार रही हैं जिन्हें देख देख श्यामा जु अपना आपा खो रही हैं कि यहाँ यहाँ और यहाँ श्यामसुंदर ने बीती रात उन्हें छुआ था और कुछ ऐसे ही अदा से उनके गहने प्रेम से एक एक कर उनकी सुकोमल देह से अलग किए थे।प्यारी जु हर बार की तरह अभी भी अपने ही भावों में डूबी हैं।कभी वो मंद मंद मुस्का देती हैं तो कभी पलक झपकते ही उनके नम नयन बहते तो नहीं लेकिन न जाने उन्हें कान्हा से हुए वियोग में डुबा देते हैं।उन्हीं भाव तरंगों में ये भी बहने लगती है कि अचानक से सब सखियां खिलखिलाकर हंसने लगती हैं और फिर धीरे धीरे वहाँ से हटती जाती हैं ताकि उबटन तेल आदि सब सामग्री जुटा सकें।
अब जी भर देख सकुंगी लाडली जु को जो अभी भी भाव तरंगों के उतार चढ़ाव में ही हैं उनकी मदमस्त नम आँखें ऊपर उठ ही नहीं पाती।प्रियतम के ख्यालों में डूबी वो एक दम से हंस पड़ती हैं जिसे देख मैं भी भावभावित हुई ठुमक उठती हूँ कि एकाएक श्यामा जी की नज़र मुझ पर पड़ती है और मैं --मैं तो खो ही जाती हूँ उनकी मधुर चित्तवन में ।कुछ जान ही नहीं पाती कि प्रिया जु ने तनिक से इशारे से मुझे पास बुलाया है।इतने में ललिता विशाखा सखियां वहाँ आ जाती हैं।वो उनको सफेद रंग की ओढ़नी देती हैं जिसे पहन किशोरी जी उनके संग यमुना तट की तरफ चलती हैं।
हाए उनकी छटा क्या कहुं
पतली झीनी सी सफेद साड़ी में वो-------
देह पर कोई श्रृंगार नहीं कोई अलंकार नहीं न कोई काजल न कोई डिठोना नव अंकुरित कपास का पुष्प हों जैसे जिसे अभी पवन ने भी ना छुआ हो।
बस एक पांव की पायल जिसे प्रिया जु ने नहीं उतारने दिया सखियों को क्यों? कान्हा जी ने खुद अपने करकमलों से जो पहनाई है और उन्हें ये प्रिया जु के चरणों में बहुत बहुत बहुत सुंदर जो लगती है।चरण सेवा के दौरान वो इस पाजेब पर बलिहार जाते हैं कि राधे मुझे अपनी इस पायल का घुंघरू ही बनालो ना।प्रिया जी ज्यादा कुछ नहीं कह पातीं बस इतना ही कि कान्हा यहाँ नहीं आपके चरण कमल तो मेरे हृदय में बसते हैं और आप मेरे दिल-ओ-जां पे छाए हो।मेरी श्वासें आपका नाम लेने से चलती हैं और दिल की धड़कन तो रूक ही जाती है जब एक पल के लिए भी आप से वियोग के बारे में सोचती हूँ ।ये आप यूँ ही इस पायल का मान बढ़ाते हो।इतने पर ही वो शर्मा कर मुंह फेर लेती हैं और उनकी आँखों से अश्रुधार बह निकलती है।श्यामसुंदर के सम्मुख होने पर उनकी ऐसी दशा होती है तो जब वो आसपास नहीं होते तो -------सखी-----उनकी विरह वेदना का असर उनके पास आने वाली हर सखी पर होता है सखी ही क्यों मुझे भी उनकी दशा पर कंपन होने लगता है ऐसी तड़प मुझे -----तो सोचो श्यामा जु------------हा श्या-----मा ज-----उ-----
यमुना तट की और बढ़ रही हैं सखियां उन्हें छेड़ रही हैं उन्हें बुला रही हैं बीती रात की बात कर कर वो प्रिया जु को बुलवाना चाहती हैं पर वो तो न जाने कहाँ हैं कहाँ खोई हैं न कुछ कह रही हैं न बात ही करतीं हैं  किसी से भी।आखिर ऐसा क्या हुआ होगा बीती रात-----------
क्रमशः

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हरिवंश की,जब लगि आयौ नांहि। नव निकुन्ज नित माधुरी, क्यो परसै मन माहिं।।2।। वृन्दावन सत करन कौं, कीन्हों मन उत्साह। नवल राधिका कृपा बिनु , कैसे होत निवाह।।3।। यह आशा धरि चित्त में, कहत यथा मति मोर । वृन्दावन सुख रंग कौ, काहु न पायौ ओर।।4।। दुर्लभ दुर्घट सबन ते, वृन्दावन निज भौन। नवल राधिका कृपा बिनु कहिधौं पावै कौन।।5।। सबै अंग गुन हीन हीन हौं, ताको यत्न न कोई। एक कुशोरी कृपा ते, जो कछु होइ सो होइ।।6।। सोऊ कृपा अति सुगम नहिं, ताकौ कौन उपाव चरण शरण हरिवंश की, सहजहि बन्यौ बनाव ।।7।। हरिवंश चरण उर धरनि धरि,मन वच के विश्वास कुँवर कृपा ह्वै है तबहि, अरु वृन्दावन बास।।8।। प्रिया चरण बल जानि कै, बाढ्यौ हिये हुलास। तेई उर में आनि है , वृंदा विपिन प्रकाश।।9।। कुँवरि किशोरीलाडली,करुणानिध सुकुमारि । वरनो वृंदा बिपिन कौं, तिनके चरन सँभारि।।10।। हेममई अवनी सहज,रतन खचित बहु  रंग।।11।। वृन्दावन झलकन झमक,फुले नै

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... परमानन्द प्रभु चतुर ग्वालिनी, ब्रजरज तज मेरी जाएँ बलाएँ... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... ये ब्रज की महिमा है कि सभी तीर्थ स्थल भी ब्रज में निवास करने को उत्सुक हुए थे एवं उन्होने श्री कृष्ण से ब्रज में निवास करने की इच्छा जताई। ब्रज की महिमा का वर्णन करना बहुत कठिन है, क्योंकि इसकी महिमा गाते-गाते ऋषि-मुनि भी तृप्त नहीं होते। भगवान श्री कृष्ण द्वारा वन गोचारण से ब्रज-रज का कण-कण कृष्णरूप हो गया है तभी तो समस्त भक्त जन यहाँ आते हैं और इस पावन रज को शिरोधार्य कर स्वयं को कृतार्थ करते हैं। रसखान ने ब्रज रज की महिमा बताते हुए कहा है :- "एक ब्रज रेणुका पै चिन्तामनि वार डारूँ" वास्तव में महिमामयी ब्रजमण्डल की कथा अकथनीय है क्योंकि यहाँ श्री ब्रह्मा जी, शिवजी, ऋषि-मुनि, देवता आदि तपस्या करते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री ब्रह्मा जी कहते हैं:- "भगवान मुझे इस धरात