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कभी यूँ भी आओ मेरी आँखों में , सलोनी जी

हरि
कभी यूँ भी आओ मेरी आँखों में
कि मेरी नज़र को ही खबर न हो
बस हरि
एक रात नवाज़ दो मुझे
कि उसके बाद सहर ही न हो
क्यों हरि
कि मैं तेरी मैं तेरी
रे कान्हा मैं तेरी
हां मेरे रसिया मैं तेरी
अब आ मेरे प्रियतम मैं तेरी

सदा सर्वदा थी तेरी
और सदा सर्वदा मेरे तुम हो
आज जब तुम ने छू ही दिया
तो यकीं माना मेरे तुम हो
अंग अंग पर जो निशां देखे
वो कर कमल तुम ही तो हो
होंठों को जब छुआ तो
अ-धरा अमृत सा एहसास तुम हो
ऐसे खो गई प्रिय कि मैं हूँ ही नहीं
हर कहीं तुम ही तुम हो
खुले जब दृग बिंदु पूरित नयन
तो पाया मेरी राधा भी तुम हो
दोनों को जब पाया यूँ मुस्काते
संगिनी(राधा)से पूर्णतः प्रियतम मेरे
पूरक इस'पूर्णा'के आधार राधे तुम ही हो

पीया जो आँखों से तेरी
हर जाम वो पूरा था
पिलाया जो तूने अधरों से
वो मेरी राधे के दम से रस भरपूरा था
ना हक था जिसपे मेरा
वो जो जाम पीकर
तुम पर अब हक मेरा पूरा था
जतला दिया जिला दिया राधे
तुम बिन कृष्ण मेरा अधुरा था

किया जब प्रेम तो प्रेम को ही मांगा था
तुम ने जो दिया मेरा तो उससे आधा था
हर पल हर घड़ी जब दुआ कोई की थी
पा लेना उसे भी है तेरा प्रेम ही
यही तेरा अंदाज़-ए-ब्यां सा था
उलाहनों में भी छुपा था जो प्रेम
उस में भी पलक झुका सर नवाया था
जीवन की हर जीत हर हार
हर मोड़ पर तुम्हें ही खड़े पाया था

सुनो हरि तुम में जो विश्वास निहित था
वो कब इश्क-ए-जुनूं बना
मैं खुद ही ना जान पाई हूँ
कब क्षण क्षण में तुम्हें जीने लगी
यूँ जैसे मुझे तुम में ही मरना था
गिरफ्तार हूँ तेरी मोहब्बत में
तुम संग ही अब जीना है
बंधनों से मुक्त होकर ही
मुझे स्वतंत्र अब जीने दो
ना बांधो अब इस परिंदे को
आज़ाद उड़ान भरने दो
स्वतंत्र की 'स्वतंत्रा' बन
प्रियवर भावों में ही रहने दो
अब हर आह में भी तेरी वाह है
हर साँस को तेरे आगोश में लेने दो


हसरतें मचल गयी जब तुमको सोचा एक पल
के लिए...
सोचो दीवानगी तब क्या होगी
जब तुम मिलोगे मुझे उम्र भर के लिए....राधे

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