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सलोनी लीला भाव 1

"कान्हा रे....
तेरा इश्क़ ही है मेरी बंदगी,मुझे और कुछ तो खबर नहीं ...
तुझे देख कर देखूँ और कहीं,अब मेरे पास वो नज़र नहीं ... "

प्रिया-मोहन
दोनों बैठे हैं कदम्ब तले
मोहन एक टक निहार रहे हैं
सुंदर मनमोहक प्रिया जु को
कुछ खोए खोए से सोच रहे हैं
कब प्रिया उन्हें देखेंगी कब वो उनसे बात करते करते उनके चित्त की तृषा को समझेंगी
कब वो उनको बेहद बेचैन देख अपनी बाहों में भर लेंगी कब वो उन्हें अपना स्नेहिल गहन आलिंगन देंगी।ऐसा सोच प्रियतम की आँखों में अश्रु भर आते हैं और वो प्रिया वियोग में डूब जाते हैं
और दूसरी तरफ प्रिया जु की दशा भी कुछ ठीक नहीं वो तो भीतर मन में अपनी लज्जा को बैठी कोस रही हैं क्यों ये लज्जा रूपी गहना बनाया किसने!कब से श्याम को निहारने को ये पलकें उठना चाहती हैं पर ये निगोड़ी लाज है कि पहरा दिए बैठी है प्रिया का वस चले तो वो मोहन को कभी न तड़पने दें लेकिन ये लाज है न दोनों के दरमियां दीवार सी है बिल्कुल।
दोनों के मन चित्त अति अधीर व्याकुल हो उठते हैं मोहन प्रिया की और प्रिया मोहन की दशा को जानते हुए भी खामोश हैं पर कब तक।
एक दम से दोनों भीतर से पुकार उठे
मोहन प्रिया को और प्रिया मोहन को
दोनों ने पुकार सुनी और देखने लगे कि जैसे दोनों में से एक ने दूसरे को नाम ले बुलाया हो
मिल ही गई नज़र एक पल के लिए
फिर क्या
बस हो गई प्रेम वार्ता आरम्भ
अब मोहन की आँखों के आंसु और प्रिया की पलकों की लाज का पर्दा हट गया हो जैसे
'प्रिय मन तो करता है कि'
लो अभी भी चुप्पी ही पसरी है
पहले नज़रें मिलने में लाज
अब बोलने में भी श्रम
पर उत्तावले मोहन अब चुप नहीं रहने वाले
'राधे पास आओ'
वो थोड़ा बिन नज़र मिलाए मोहन के पास सरकीं मोहन ने झट हाथ थाम लिया
प्रिया जु की चूड़ियों की खनक ने एक बार के लिए सब मौन कर दिया
'सुनो राधे दो ना'
'क्या दूँ '
सब तो हर चुके तुम हरि
मेरा मुझमें कुछ नहीं कान्हा
अब जो भी है सब तेरा
इतना ही कहना था बस श्याम मंत्रमुग्ध से हुए राधे को देख देख बेचैन होने लगे
उनमें अभी भी यही चाह है कि राधा जु खुद उन्हें कब अंक लगाएँ
यूँ तो चाहे वो कितना स्नेह करें श्यामा से
लेकिन श्यामा जु की चाह बिना वो उन्हें छूते ही नहीं
सारे खेल और सब नोंक झोंक तो प्रेम लीला का एक अटूट हिस्सा ही होता है जिससे प्रेम दिनोंदिन बढ़ता रहता है श्यामाश्याम को और और और पास लाता है
वियोग और विरह भी मिलन के पलों को और और और स्नेहिल ही बनाता है
ऐसे तो वो अभिन्न ही हैं
उनमें भिन्नता कैसी फिर भी लाड़ लड़ाने के लिए लीला रस के लिए वो दो होते हैं
प्रिया श्याम की व्याकुलता देख उनके और पास आती हैं।श्यामसुंदर ज्यों ज्यों प्रिया को पास पास महसूस करते हैं उनकी व्याकुलता और बढ़ती रहती है।वो प्रिया से और करीब होने को कहते हैं कि प्रिया उन्हें कंठ लगा लेती हैं मोहन भी श्यामा जु को यूँ आगोश में लेते हैं कि दोनों गहन आलिंगन की मुद्रा में बंधे समय का आभास ही भूल जाते हैं कि तभी हवा के एक झोंके से ही प्रिया जु को ज़रा खुद के होने का आभास हुआ लेकिन मोहन उन्हें थामे रखते हैं और उनके रसीले होंठों को छू कर अधरामृत पान करने लगते हैं ।यूँ वो धीरे धीरे एक दूसरे के पास आते आते खोए से क्रीड़ाएं करते सारी रैन बिताते हैं।कभी श्रमित होकर एक दूजे को आसरा देते
कभी कुछ बात करते कभी अठकेलियों में तो कभी साज श्रृंगार रस में डूबे।
सुबह होने और अब बिछुड़ने की घड़ियों के पास आते ही उनमें रस संचार के भाव में अभाव होने लगता है।रात से सर्पों की भांति एक दूसरे से लिपटे राधा माधव अलसाये से तो हैं पर उनमें अब जुदा होने का भय और उससे होने वाले विरह के रंग भी उघड़ने लगे हैं ।प्रिया जो पल भर श्याम से दूर नहीं होना चाहतीं वो अश्रुपूरित नयनों से मोहन को देखती हैं और रूंधे से कंठ से कह उठती हैं
'श्याम मत जाओ मत जाना कहीं हमें छोड़ प्रिए कहीं मत जाना'अभी तो वो मोहन से लिपटी हैं उनकी ऐसी दशा देख श्यामसुंदर भी तड़प जाते हैं कि प्रिया फिर बोल उठती हैं 'देखो मोहन हम बताए देते हैं तुम्हें तुम या तो हमें भीतर यूँ समा लो कि हमें जुदाई का एहसास न हो या हमें यूँ खुद से भिन्न कर जाओ कि हमें कभी फिर तुम में हम में हुई अभिन्नता ही याद न रहे ऐसे तड़पता छोड़ मत जाओ मोहन कि हम तुम से दूर होकर मर ही जाएं ऐसा स्नेह क्यों देते हो कि हम तुम्हें न पाने की वजह से तुम्हें खो कर भुला देना चाहें आओ ऐसे सदा हमें संग रखो कि हम प्रिया हो जाएं मत जाओ मोहन कि हम फिर संगिनी ही बन पाएं मत जाओ कि या फिर कभी न आने की कह जाओ कि हम चैन से जी न पाए तो मर ही जाएँ ।मोहन ऐसी प्यास बुझादो कि तुम तृषित न रहो और हम तृषा को भूल जाएँ मोहन हो जाओ एक कि दो न रहें या करो ऐसे दो कि कभी हम एक न हुए कि अब इश्क-ए-जुदाई में हम बेकाबू हैं हुए।'

"मुझे तुम किस लिए जगाते हो यूँ रातों में
नींद आती नहीं ख्वाहिश-ए-मुलाकातों में

लिपट गयी हैं हसरतें यादों से इस तरह
जिन्दगी मदहोश है तेरे ख्यालातों में"

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