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निकुँज गिलहरी भाग 5

भाग-5

प्रियतम!!!!
हाँ प्रियतम ही तो हैं
मुझे तो श्याम ही दिख रहे हैं श्यामा जु में
वही तो हैं
उनकी छवि श्यामा जु में झलकती है और श्यामा जु को हर पल संग का एहसास दिलाती है।खुद वो अपना मुख जब यमुना जी के निश्चल नीर में देखती हैं तो वहाँ श्यामसुंदर ही नज़र आते हैं।यही हाल प्रियतम का होता है वो हर कहीं हर सखी में भी श्यामा जु को ही देखते हैं।श्यामा जी तो अभी भी उन्हें ही देख रही हैं।
स्नान की सब सामग्री तैयार है हल्दी केसर चंदन मिश्रित उबटन श्याम ही तो हैं दूध दही तेल सब में श्याम ही हैं महकते।यमुना जी का श्यामल जल श्याम ही हैं।किशोरी जु के श्याम  केश तन को ढकते हुए वही तो हैं।
सखियां राधे जु को उबटन व तेल लगाती हैं आहा।।जैसे गौरवर्ण पे पीताम्बर पहना दिया हो कुछ काल तक सखियां उन्हें युंही सेवा प्रदान करती हैं लेकिन प्रिया जु को कोई होश नहीं।उनकी देह से आ रही महक से मैं भी मंत्रमुग्ध हुई जाती हूँ ।यमुना जल में घुल रहा प्रिया जु का देह रस सर्वत्र फैल रहा है हवाएं महकने लगती हैं।
इन हवाओं का असर तो देखो ये प्रियतम को ज्यों संदेस दे रही हों उकसाती हों उनको बुला रही हों।प्रियतम जैसे जानते ही हैं श्यामा जु की दशा को तुरंत वंशी उठाते हैं और छेड़ देते हैं मधुर अति मधुर धुन जो जैसे ही प्रिया जु के कानों में पड़ती है वे होश में आती हैं।व्याकुल तो वे हैं ही पर न जाने क्यों अब वो उत्साहित हो गई हैं और खुद स्नान कर तीव्रता से उठती हैं और लो ऐसा उत्तावलापन कि शीघ्रता से सुंदर वस्त्र धारण करती हैं ।गहरा लाल जो प्रेम का रंग है उनकी साड़ी है और उस पर सफेद व नीले रंग के रत्न जड़ित हैं जरी के काम से शोभित अति मनोहारी लग रही हैं।नीले रंग की नरम चोली जो ऐसे तैयार की गई है कि प्यारी जु को सुख प्रदान करे।उनकी लाल प्रेमपूरित ओढ़नी आसमान को भी लालिमा प्रदान करती हो जैसे।बलिहार।।
सब सखियां उनकी बल्लाईयां लेती हैं श्रृंगार से पहले ही उनके कान के पीछे काला ढिठोना जो प्रिया जु को श्याम जी का ही एहसास करा रहा है।
वंशी की धुन तीव्र अति तीव्र हो उठती है जिसे सुन प्रिया जु सखियों से उन्हें सुंदर श्रृंगार धराने को कहती हैं।उनके हृदय में प्रियतम के आगमन से वीणा के तार छिड़ चुके हैं ।सखियां उनकी व्याकुलता को जान हंसी ठिठोली करने लगती हैं वो उन्हें श्रृंगार तो धरा रही हैं लेकिन साथ ही साथ वंशी की धुन जैसे सभी के हृदयों को चीरती जा रही हो।श्यामा जु के साथ साथ सखियां भी प्रियतम के दर्शन को व्याकुल हैं।व्याकुल तो होना स्वाभाविक ही है ना क्योंकि सब प्रिया जु की अंश ही तो हैं।स्वसुख नहीं उनमें जो प्रिया जु के मन में रहता है वही सखियों के मन में है।
अरी लेकिन ये क्या।।।एक तरफ तो श्यामा जु का श्रृंगार हो रहा है और दूसरी और----
आहा----आनंद----देख कर ही सब इतना प्रिए लग रहा है तो जब श्याम जु संग श्यामा जु वहाँ पधारेंगी तब-----
क्रमशः

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