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खोवत रजनी , तृषित

खोवत रजनी में सुमोहिनी मनमोहन ।
रजनी रजनी कब आवेंगी , पुकार-पुकारत मोहन तरसे ।

दिवस बैरन विछोह प्रदाता , रजनी मिलन वेला सुप्रकासा ।

तनिक लाज ना आवें रजनी संग ,  सजनी आलिंगन अति गाढ़ा ।

रजनी सजनी को गहना , या गहना बिन सुनो रहत सुनैना ।

ओ रजनी , तोहे विनत पुकारे बावरे नैना दोउ तृषित मोहन निकुँज द्वारे ।

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प्रिया भी बावरी कब ढ़ले साँझ कब अंग लगूँ पिय संग

प्रियतम् उर संग नहीँ होवे , लिपटनि संगिनी संग सब बिसरत सोवें ,

काहे निकलत भुवन भास्कर , कौन घड़ी तोहे कौन उपजायो ,

प्रीत की रीत न जाने तू बावरे , अल्प मिलन बीच भौर ले आयो ,

सोवत जगत रैनन होवें तब , बांवरे  दिलबर दीदार में डूबत ,

डूबत डूबत करत नैनन बतियां , अधरन न बोलत साँसन संग होवें सिसकियां

*****

ऐरी री सखी री पिय छुवत सुमधुर पवन आ चली है ।
सजाओ री मोहे , आवन पिय तब काहे की देरी है ।

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ऐसे न देखो पिया !!
लाज मोहे पलकन पर भई है

तिरछी मधुर कटारी मारत , अंग -सुअंग - सर्वंग लहरित धार बही है

ऐसो अति-कम्प गढो अंखियन सु , तर्जनी अधरन में अटक गई है

कौन उठावें हाय वा चुनरी , सर से ज्यों सरक गई है

सर-सर मची भीतर पियवर , लहू में कैसी पड़ी थाप , नाच-नची है

ओ सांवरे सजन हमारे , न देखो नैनन कजरारे ,

यमुन जल या दर्पण निहारो स्व अस्त्र स्वयं तनिक सम्भालो

जब नाच उठो तुम निहारत दर्पण

पुकार उठो जब देखत अपनों सुरस बदन 

तब जानोंगे क्या होवे है हिय संग , ऐसी खलबली जीवत न मरण

और बैरन या दरद अति मिठो ,  बिछुरत तब प्राणन हाय-हाय करत मूर्छित मरत सम जानो ।
--- सत्यजीत तृषित ।।।

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