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आज कैसा अद्भुत दिन है छाया , सलोनी जी

"जिन नैनों में श्याम बसे
                            दूजा कौन समाय..
पलकें गिरें या पलकें उठें,
                        मोहे नज़र श्याम ही आयें.."

अहा।।
आज कैसा अद्भुत दिन है आया
हट गई अंधियारी रात की छाया
अरी।।
आज भी राधा जु ने मुझे गले लगाया
जन्म जन्मान्तर का सगरा भेद भुलाया
हाए।।
प्यारी राधे जु के अंक लगुं
आज ऐसा मैंने सौभाग्य पाया
अहोभाग।।
बलिहार पिया मोहन पे और
बलिहार प्रिए किशोरी पे
लायक न सही पर
फिर भी मुझ अभागिन से अनोखा नेह बढ़ाया
आँखों में अश्रु प्रवाह और
मन मेरे उल्लास भरा
कैसा अजब प्रेम है पाया
अपनी कुपात्रता को भूली मैं
कैसा मुझमें ये साहस हो आया
सोच सोच हार गई
क्या ऐसा कोई कर्म किया
गिर कर किशोरी चरणन में
भूलों का पश्चाताप किया
भूल ही गई कि श्यामा तो
हैं करूणामयी अति भोरी
करतीं अकारण कृपा ही

तब बोलीं प्यारी
देखो संगिनी
आज न मैंने श्रृंगार किया
तेरे हाथों से सजने को
आज प्रियतम खुद तेरे पास
सेवा का सौभाग्य लाए हैं
आह।।
रोती आँखों ने मुस्करा दिया
मनमोहक वचन सुन राधे जु के
अंतर में कंपन हुआ
हाथ पैर शिथिल हुए
लड़खड़ा मेरी ज़ुबां गई
मधुप माधवी का श्रंगार करूँ
ऐसी कोमलता मेरे हाथों में नहीं
भीतर तक सीहर गई
अपनी कठोर देह का भान हुआ
मन में भी है संकोच भरा
आज संगिनी का भाग्य खुला
मोहन प्रेम में दीवानी हुई
मैंने दिया था मानसी सेवा को भुला

देर न की पल भी
लिया श्यामा जु को सन्मुख बैठा
पकड़ हाथ पिया का सर पर दिया पधरा
क्षमा चाहती हूँ प्रिय
आप क्या हो क्या मैंने तुमको समझ लिया
रखना अब सदा अपने कदमों में
करना न खुद से कभी जुदा
बनालो पगली को दासी कि
अब दर्द-ए-इश्क न जाए सहा
बैठो प्यारे संग श्यामा के
कि आज देऊं अंग अंग सजा

वारि जाऊँ ।।
ऐसी सुंदर मनमोहक जोड़ी रे
मन न धरे धीर जोगन मैं हुई रे
री सखी
आज प्रिया ने औढ़ा है लाल सुभग रंग
जिस पर लगी है झालर रंगी है सलेटी सुंदर
मेरे मन जो सरल सुंदर सलोनी छवि प्यारी की
वही हैं आज वो मूरत बनी सादगी की
पहना है लाज रंग चेहरे पे
जो है सबसे अनोखी पहचान सुंदरता की
लेकर लाल चूनर लाल माँग भरी
बालों में सुंदर महकते गुलाबों की लड़ी
सिर पर जड़ाऊ माँग टीका सजा
माथे मनमोहिनी के बिंदिया का लिश्कारा
आँखों में है खूब लम्बी तिरछी कजरे की धार तनी
नासिका सुंदर सुंदर नथ से है सजी
हल्के से अधरों को है छूती
सुरख लाल होंठों पे है गुलाब जल रेख लगी
कानों लटकते झुमके छूते हैं सुराही सी गर्दन
गल लगी है सुनहरी मुतियन की माला
एक है मंगल सूत्र की लड़ी
बाजुबंध पहने हैं प्यारे लगें
कोहनी से हाथ तक मेहंदी महकती सी
कलाईयों की चुड़ियों की खनन खन
करतीं कुंज की शांति भंग
उंगलियाँ भरी अंगुठियों से
लचकती कमर पर कमरबंध कोमल रेख सी
पैरों में प्यारी पतली सी पायल
मोह रहे खनक कर नूपुर
मोहन का दिल करे धक धक
अंग अंग से श्यामा के श्याम नाम की धुन सुने
रोम रोम श्वास श्वास है श्याम की महक सनी
यूँ उनकी सादी सुंदरता मेरी अखियों ने सजाई कि प्यारे मोहन जी से तो प्यारी से नज़र न हटे
अब बचा है एक काम ही
जो करेंगे मेरे मीत श्याम ही
एक लाल सुनहरी फूलों का सुंदर गजरा है बना
जो मैंने दिया है श्याम जी को थमा
लगादो इसे श्यामा जु की वेणी में
कि बढ़ादो इसकी सुंदरता को
और राधे जु को श्याम हाथों से दो महका
आहा।।
अब कुछ भी शेष नहीं
मेरी श्यामा श्याम के अंग लगते ही पूर्ण हुईं
अपनी आँखों से काजल का काला टिक्का
श्यामा जु को देऊं लगा
हाए।।
अब न लगे किसी की नज़र प्यारी को
कि श्याम तुम तो लो अपनी नज़र हटा
देखो सखी
ऐसी मनमोहिनी सादी किशोरी जी
कि दी है गहनों की सुंदरता बढ़ा
मेरी तो नज़र ही न हटे
सोचो श्यामसुंदर ने कैसे धीर धरा होगा

लो अब देर न करनी
श्याम को भी स्थिर सुंदर श्रंगार दूं धरा
अरे।।
ये क्या
देख देख मेरी अखियां तो रह गईं ठगी सी
बुद्धि भी गई है चकरा
देख सांवरे का नटवर सुंदर हार श्रंगार रह गई मैं तो दंग
एक मोरपखा से ही हुआ मेरा कृष्ण पक्षधर
पीताम्बर पहन गले वैयजंती माल लगी
कानों कुंडल हाथों कंगन
करधनी पर है वंशी लटकी
कहने लगे मैं तो हूँ नाम काम धाम से ही सुंदर
मुझे राधे की तरह अलंकारों की कोई ज़रूरत नहीं
लगे इतराने पिया चोरों के चोर ने
राधे के संग मेरा भी चित्त लिया चुरा
हंसी हमारी छूट ही गई
इंतजार न हो रहा तुमसे मोहन
राधे जु को संवरने में क्यों देर लगी
हैना।।
नहीं री पगली
तू कहती है तो ले देऊं तुझे सब सच मैं बता
बैठ गए श्यामा संग और कहने लगे कुछ
इससे पहले लगीं वो ज़ोर से हंसने
हुआ सांवरे का मान भंग
डर रहे थे श्यामसुंदर कि श्रंगार के बहाने
कहीं तू दे न इनको सखी रूप बना
इसलिए पहले ही नटवरलाल खुद है बना
हीहीही।।
सुन राधे जु की बात
संगिनी को आ गई अपनी पहली कारस्तानी याद
भूले ना हैं पिया अभी भी
हुआ मेरा चेहरा शर्म से लाल
मुख ढक लिया हाथों से
लाज लगी हाए ये क्या
हंसते हंसते श्याम ने हाथ दिया मुख से हटा
कहने लगे यही तो है तेरा प्रेम जो तू देती है सबको हर्षा
दूर तो तू रहती है पर दूर रहना नहीं जाता सहा
कभी तेरी आँखों में अश्रु तो
कभी ये शरारत से रहती भरीं
जो तुझे देती हैं मुझको भी आनंद
वही आनंद बन तू सब जग को दे आ
प्रेम प्रवाह हो ऐसा संगिनी बने प्रेरणा
विशुद्ध प्रीति बन श्याम की
आ जाना फिर मैं तुझे लूंगा भीतर समा
ऐसे ही मस्ती में रहे सदा
रहना तुम देती सबको प्रेम संदेस मेरा

"फीकी है हर चुनरी, फीका हर बन्धेज..
जो रंगता हैं रूह को, वो असली रंगरेज़ !!"

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