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पूरी हो श्यामश्याम-चरण-सेवा साध मेरी

राधे राधे
श्याम श्यामा को भाव-अभिनन्दन
मिल जायें सेवा में मुझे युगल चरण

अंतस:के शून्य क्षितिज से
क्यों रीती लौट आती है
टकराती बिलखाती पगली सी
फिर फिर कर प्रतिध्वनि मेरी
कब पहुँचेगी पुकार प्रभु तक मेरी।
पूरी हो श्यामश्याम-चरण-सेवा साध मेरी।

अंत:स्तल में बसी  हुई है मेरे
गहन वेदना की इक वीरान वस्ती
पीड़ा और व्यथा का सागर
विकल वेदना की रागिनी सी बजती
कब पहुँचेगी पुकार प्रभु तक मेरी।
पूरी हो श्यामश्याम-चरण-सेवा साध मेरी।

ज्यौं छिल छिल कर फूटे छाले
बेसुध सी इस पीड़ा से
मानों घावों की औषधि बनते
दृग जल बह बह कर मृदुल विरहा के
कब पहुँचेगी पुकार प्रभु तक मेरी।
पूरी हो श्यामश्याम-चरण-सेवा साध मेरी।

रह रह कर अभिलाषायें
करवट लेतीं हैं नैराश्य हृदय में
किसने लूटा है इतनी खामोशी से
बेसुध चैतन्य हमारा
कब पहुँचेगी पुकार प्रभु तक मेरी।
पूरी हो श्यामश्याम-चरण-सेवा साध मेरी।

सुख हार हो चुका जैसे
साम्राज्य सुप्त विकल वेदना का
भीगी पलकों की उलझन
श्वासों से अश्रु-उच्छवासों का गिरना
कब पहुँचेगी पुकार प्रभु तक मेरी।
पूरी हो श्यामश्याम-चरण-सेवा साध मेरी।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)

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