भावदेह 3
श्री प्रियप्रियतमौ विजेयताम् ।।
भक्ति ह्लादिनी शक्ति की विशेष वृत्ति है । ह्लादिनी शक्ति महाभावस्वरूपा (श्री राधा)है । श्री राम भक्ति में जानकी माँ । अतएव शुद्ध भक्ति स्वरूप से महाभाव का अंश है, इसमें कोई सन्देह नहीँ । भावरूपा भक्ति चाहे साधन से हो अथवा कृपापूर्वक, वह वस्तुतः महाभाव से ही स्फुरित होती है । इसलिये कृत्रिम साधन-भक्ति की प्रयोजनियता स्वीकार करने पर भी, भाव के उदय को सभी साधन द्वारा दुष्प्राप्य मानते हैं । कृत्रिम साधना के मूल में जीव रहता है , परन्तु भक्ति जीव का स्वभाव सिद्ध धर्म नहीँ है , क्योंकि महाभाव अथवा भाव ह्लादिनी शक्ति की वृत्ति होने के कारण स्वरूपशक्ति के विलास भगवतस्वरूप के साथ संश्लिष्ट है । जीव कर्म कर सकता है , परन्तु भाव को प्राप्त नहीँ कर सकता , क्योंकि वह स्वरूपतः भावमय नहीँ है । कर्म करते करते भाव जगत् से उसमें भाव का अनुप्रवेश हुआ करता है । इतना समझ लेंना है सरलता में भक्ति - प्रेम पथ की साधना ही श्रीराधा की शक्ति है , श्री कृष्ण खेंचते है और उनमें भी यह आकर्षण उनकी ह्लादिनी शक्ति ही है , श्री कृष्ण का खेंचना और जीव का उन की ओर जाना (जैसे चुम्बक और लोह) दोनों और की शक्ति श्री राधा ही है ।
चाहे भजन हो , अपने सम्बन्ध रूप में (भाव) वो भजन , वो प्यास , वो पथ , वो शक्ति , सब राधा है
प्रिया प्रियतम् के नित्य मिलन में मिलती उनसे उनकी प्रिया ही है।
गहनता में प्रेम में , जब तक साधक स्वयं है , बाधा है , मञ्जरी आदि रूप में आत्मसमर्पण हुआ उनका मिलन होता है ,सोभाग्य से भाव रूप में दर्शन । केवल भाव रूप में । --- सत्यजीत तृषित ।। शेष अगली क़िस्त में , विस्तार और समझते हुए "भक्ति तत्व" हेतु पूर्ण सप्त दिवसीय सत्संग कर सकते है , जिसमें सम्पूर्ण भक्ति अवस्थाओं का यथेष्ठ भगवत् चाह से वार्ता सम्भव हो । क्योंकि सब लिख पाना सम्भव नहीँ हो पाता । 09829616230 . ---
जय जय श्यामाश्याम ।।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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