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कृष्ण बाल लीला राधा बाबा

🌿🌸श्री कृष्ण बाल लीला🌸🌿

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(ब्रजराजनंदन के मथुरा गमन के पश्चात् ब्रजवासियों की लीला-स्मृति)

🌿जन साधारण की दृष्टि से बृज अब सूना हो गया। ब्रजराज नन्दन मथुरा चलें गये।
   अपने पीछे वह ग्यारह वर्ष की बडी ही मधुरमयी स्मृति छोड़ गये हैं।
यह स्मृति ब्रजवासियों के हृत्पट पर अंकित हैं, जिसमें उलझे हुए उन के प्राण निकल नही पा रहे हैं, अन्यथा उड़कर प्राणाधार ब्रजराजनन्दन के पास कभी के चले गये होते।

🌿उन व्रजवासियोँ के नेत्र श्रीकृष्ण लीलामय हो चुके है।

वे अनुभव करते रहते हैं --

🌹नन्द प्रांगण में हरिद्रामिश्रित दधि का प्रवाह हो रहा है।
🌹यशोदा की गोद में एक द्युति मनोहर शिशु है।
🌹शिशु निष्प्राण पूतना के वक्षःस्थल पर खेल रहा है।
🌹यशोदा अपने प्राण धन नीलमणि को पालने में झुला रही हैं।
🌹गोपशिशु कोलाहल कर रहे हैं।
नीलमणि ने अपने नन्हे नन्हे चरणों को उछाला। उसी से विशाल शकट उलट गया है।
हमने अपनी आँखों से यह स्वयं देखा है।
🌹तृणावर्त के अंग चूर्ण-विचूर्ण होकर शिला पर पड़े हैं। नीलमणि उसपर पड़ा हुआ किलक रहा है।
🌹अब तो नीलमणि चलना सीख गया।
🌹अरे! यह तो गोवत्स से जरा भी नही डरता। आज दिन भर उनकी पूँछ पकडे घूमता रहा है।
🌹यशोदा का चञ्चल नीलमणि छिपकर नवनीत खाने आया है। स्वयं खाकर बंदरों को भी बाँट रहा है।
🌹यह देखो! लाला ने दुहने से पहले ही वछडों को खोलकर सारा दूध पिलवा दिया है।
🌹श्रीदाम मैया से कह रहा है -"मैया! नीलमणि ने माटी खायी है। नीलमणि ने मुख में ब्रह्माण्ड सिखाकर मैय्या को भ्रमित कर दिया।
🌹मैया मटकी, भाँड फोड़ने के अपराध में लाला को ऊखल से बाँध रही है।
🌹हम लोग सभी वृन्दावन चल रहे हैं। नीलमणि भी छकड़े पर चढ़ी हुई यशोदा मैया की गोद में बैठा चल रहा है।
🌹बछड़ों को चराने के लिये आज नीलमणि सज-धज कर वन में जा रहा है।
🌹ब्रजांगनायें पूछ रही हैं -- बेटा सुबल! बता तो नीलमणि ने बकासुर को कैसे उठाकर पटका।
🌹मेरे नीलमणि! बकासुर को चीर डालते हुए तुझे जरा भी भय रही लगा ?
🌹भला बता तो कि इन सुकोमल हाथों से तूने व्योमासुर का कचूमर कैसे निकाला ?
🌹यशोदा कह रही है - अघासुर से लाल की रक्षा तो नारायण ने ही की। भला उसके मुख में जाकर नीलमणि जीवित निकल आवे, यह कभी सम्भव था ?
🌹नीलमणि कालिया के फन पर थिरक-थिरक कर नाच रहा है। आकाश में बाजे बज रहे हैं, देवता फूलों की वर्षा कर रहे हैं।

🌹गोचारण करते नीलमणि वन में ग्वालों संग विविध खेल खेल रहा है।

🌹 मधुमंगल कह रहा है -- री गोपियों ! सुना, कन्हैया के साथ हम सब तालफल खाने बैठे ही थे कि तभी धेनुकासुर आया। दाऊ दादा ने उसे पतंग की तरह आकाश में घुमाकर उछाल कर मार डाला।

🌹श्रीदाम कह रहा है - गोपियों! सुनो, हमारी गायें अलग चर रही थीं। कन्हैया खेल में हार गया और मुझे पीठ पर उठाये चल रहा था कि इतने मे ही बालक बना हुआ प्रलम्बासुर दाऊ दादा को ले भागा। दाऊ दादा ने एक मुक्की की चोट से ही उसे मार डाला।

🌹गोप शिशु मैया यशोदा से कह रहे हैं --
मैया! उसी रात की तरह फिर आज वन में दावानल जल उठा था। कन्हैया के कहने से हम लोगों ने ऑंखें मूँद ली। बस उसी क्षण पता नही अग्नि कहां गायब हो गयी।

🌹ओह! अनवरत मूसलाधार वृष्टि हो रही है।मैया कह रही है -सात दिन हो गये, मेरे नीलमणि के हाथ पर गिरिराज टिके हुये हैं।
नीलमणि! नीलमणि! तेरे हाथों में पीड़ा तो नही हो रही है ?
नन्दराय वरूण लोक से लौटकर कह रहे हैं --
सचमुच मेरे नीलमणि मे साक्षात् नारायण आविष्ट होकर हम लोगों की रक्षा करते है। आवेश के समय ही मेरा नन्हा सा नीलमणी अलौकिक असंभव कार्य कर देता है।

🌹 गोप शिशु कह रहे हैं - मैया! तुम्हारी छाक तो आज पहुँची ही नही ? गाय चराते-चराते हम लोग भूख से व्याकुल हो गये थे, तो फिर हम सभी ने द्विज पत्नियों से जाकर कहा। कन्हैया को भूखा जानकर सुनते ही वह सब व्याकुल हो बावरी-सी हो गयीं और अपने घर से मिष्ठान की थालियाँ भर-भर कर भागी चली आयीं।
मैया ! उन सबने जाकर कन्हैया को घेर लिया।
  बहुत देर तक कन्हैया से कुछ कह-कहकर सब रोती रहीं, फिर लौट गयीं।
    मैया!उन्हे देखकर ऐसा प्रतीत होता का मानों उनको बाह्यज्ञान नही है।
हम लोगो ने भर पेट खाया। फिर जाकर देखा तो वे समाधिस्थ सी बैठी थीं और ब्राह्मण  गण सभी पश्चाताप करते हुए दुःख से रो रहे थे, कि -
"हाय!हाय! ब्रजेन्द्रनंदन के लिए हमारे शुष्क हृदय में जरा भी प्यार नहीं। ये स्त्रियॉ ही धन्य हैं। हमारे जीवन को धिक्कार है। इस जीवन में तो आग का जानी चाहिए।

🌹अरिष्टा सुर के संहार से प्रसन्न होकर देवता नीलमणि पर पुष्प बर्षा कर रहे है।
नन्दरानी नीलमणि के सुकोमल हाथों को हाथ में लेकर नारायण से प्रार्थना कर रही हैं -
"हे देवाधिदेव! मेरे नीलमणि के हाथ असुर के मुख में भी जाकर अक्षत रहे यह तुम्हारी ही अनंत कृपा का प्रताप है।"

🌿इस प्रकार समस्त ब्रजवासी अपने अन्तर्हृदय में सुधामयी स्मृति का विचित्र चित्रपट उलटते हुए श्यामसुन्दर की अभिनव बाल लीलाये देखते रहते हैं।

🌿जिस समय बाह्यज्ञान होता, उस समय --
"हाय, नीलमणि! तुम कहाँ गये ! मेरे प्राणधन ! तुम कब आओगे ? कितने दिन मथुरा में रहोगे ? " कहकर आँसू बहाते रहते हैं।

🌿ब्रजयुवतियों की करूण दशा का तो कहना ही क्या! श्यामसुन्दर की लीलाओं का लीलाचक्र तो उनके सामने भी घूमता  ही रहता है, पर वे तो अब प्रायः विक्षिप्त-सी ही हो गयी हैं।
🌿यद्यपि इस मतिभ्रम का आरम्भ तो पहले ही हो चुका था, जिस दिन 'वह' जादुई बंशी-ध्वनि उनके कानों में पड़ी थी। उसी दिन से वे हर पल यही अनुभव करती थीं, मानो कभी भी वंशी-रव का विश्राम हुआ ही न हो।

🌸जय राधामाधव~जय कुँजबिहारी🌸
( लीला के सूत्रधार प्रिया-लाल जू के लाड़ले परम पूज्य सिद्ध संत श्री राधाबाबा)
🌿👏👏👏👏👏👏👏🌿
--- साभार दिनेश गर्ग जी

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