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प्रेम क्या है ? क्यों है ?

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जय जय श्री राधे
    ❓"प्रेम" क्या है? क्यूँ है? कैसा है? क्यूँ करते है?❓

प्रेम को न कोई देख सकता है, न कोई कह सकता है, न कोई पहचान करा सकता है, न कोई तोड सकता है, न कोई छोड सकता है, न कोई भूल सकता है
प्रेम एक ऐसा भाव है जिसमें प्रेम करने वाला व्यक्ति अपने प्रेम के लिए दिवाना हो जाता है, प्रेम में न कोई दुख होता है, न सुख होता है, न कोई भाव है, न कोई संदेह है, न कोई अधिकार है, न किसी का होता है, न किसी का हो सकता है, न कोई प्रमाण है
प्रेम में न कोई मोह होता है, न कोई स्वार्थ होता है, न कोई व्यवहार है, न कोई पद्धति है, न कोई तन से छूता है, न कोई मन से छूता है, न कोई इंद्रियों से छूता है, केवल आत्मीय ज्योति से ही स्पर्शता है
न इसे काल का बंधन है, न कोई माया का बंधन है, प्रेम तो सर्वत्र व्याप्त है, सर्वज्ञ है, निडर है, विशुद्ध है, निर्मल है, विश्वास है, जीव सृष्टि की यह ऐसी रचना है जिसे केवल अनुभव कर सकते हैं और सत्य से स्पर्श कर सकते है
प्रेम सदा साथ ही होता है - याद से, विचार से, अक्षर से, प्रकृति से, यह अप्राकृत सत्य ही हम हमारा जीवन को आनंदमय कर सकते है, यह आकाश प्रेम है, यह धरती प्रेम है, यह सूर्य प्रेम है, यह सागर प्रेम है, यह वनस्पति प्रेम है, यह संगीत प्रेम है, हर तत्व प्रेम है

प्रेम स्वरूपिनी श्री राधारानी की जय
प्रेम अवतार श्री कृष्ण की जय
सभी मित्रो को जय श्री कृष्ण

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