श्रीवृषभानुनन्दिनी से प्रार्थना
सच्चिदानन्दघन दिव्यसुधा-रस-सिन्धु व्रजेन्द्रनन्दन राधावल्लभ श्यामसुन्दर श्रीकृष्णचन्द्र का नित्य निवास है प्रेमधाम व्रज में और उनका चलना-फिरना भी है व्रज के मार्ग में ही। यह मार्ग चित्तवृत्ति-निरोध-सिद्ध महाज्ञानी योगीन्द्र-मुनीन्द्रों के लिये अत्यन्त दुर्गम है। व्रज का मार्ग तो उन्हीं के लिये प्रकट होता है, जिनकी चित्तवृत्ति प्रेमघन-रस-सुधा-सागर आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द्र के चरणारविन्दों की ओर नित्य निर्बाध प्रवाहित रहती है, जहाँ न निरा निरोध है और न उन्मेष ही, बल्कि दोनों की चरम सीमा का अपूर्व मिलन है। इस पथ पर अबाध विहरण करती हुई वृषभानुनन्दिनी रासेश्वरी श्रीश्रीराधारानी का दिव्य वसनाञ्चल विश्व की विशिष्ट चिन्मय सत्ता को कृतकृत्य करता हुआ नित्य खेलता रहता है, किसी समय उस वसनाञ्चल के द्वारा स्पर्शित धन्यातिधन्य पवन-लहरियो का अपने श्रीअग्ड़ से स्पर्श पाकर योगीन्द्र-मुनीन्द्र-दुर्लभ-गति श्रीमधुसूदनपर्यन्त अपने को परम कृतार्थ मानते हैं, उन श्रीराधारानी के प्रति हमारे मन, प्राण, आत्मा - सबका नमस्कार !—
यस्याः कदापि वसनाञ्चलखेलनोत्थ-
धन्यातिधन्यपवनेन कृतार्थमानी।
योगीन्द्रदुर्गमगतिर्मधुसूदनोऽपि
तस्या नमोऽस्तु वृषभानुभुवो दिशेऽपि।।
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