क्यों हृदय आज तीव्र नहीँ
क्यों अधर आज उधड़े नहीँ
क्यों आज चुस्त सी हूँ
तन में कही क्यों दर्द नहीँ
हाय शब्द सुनाई आ रहे है
वस्तु अब समझ आती क्यों
वर्षा के मेघ सुख गये
पतझड़ को बसन्त क्यों कर तुम गये
अब वाणी में अटकाव नहीँ
सब से बातों में मन घबराता नहीँ
हाय यें क्या हो गया
अपशगुन सब घट गया
हाय प्रीत का रोग
फिर छोड़ गया
यूँ चौराहे पर फिर
कोई कैसे छोड़ गया
-- तृषित
हाय कैसा होश है ,
जीवन है प्रीत मदहोश है ,
कभी कहा तुम बिन नहीँ
तुम बिन रहना मृत्यु सम था ,
जीवन मृत्यु को बना लिया
एक कसक थी तब ,
अब तुम संग हो
पर , वो सब कहाँ ??
तुम कभी नहीँ थे
तो सब था ?
तुम्हारी प्रीत से मुझमेँ
मेरा रब था ।
तुम हो पर प्रीत नहीँ
जीवन की शेष रीत नहीँ
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