भगवत् प्रेम कब होगा ?
जब तक बन्धन है नहीँ होगा । मुक्त ही प्रेम कर सकता है । जब तक मन कहीँ बंधा है , कोई विचार , कोई संकल्प -विकल्प में बंधा हुआ चित् प्रेम नहीँ समझ सकेगा ।
शरणागत कहने को सब है , परन्तु जब तक अपनी और से कुछ शेष है कैसी शरणागति ।
मान लें मैं माचिस की डिबिया हूँ मेरी सारी चेतना तीलियां है , सब बिखर गई । तरह तरह विचार है जहन में । अब डिबिया में एक ही माचिस है । कोई ग्राहक क्यों ऐसी डिबिया लेगा , अथवा कौन लेगा । जब तक पूरी नपी तुली वस्तु न मिले कौन लेता है , एक एक तीली को समेट जब मैं अपने में पूर्ण हो जाऊँ तब कोई लेगा मुझे , तब शरणागति , तीली समेटना ही साधना है , पूर्ण स्वरूप को पाकर ही प्रेम होगा । अब सब तीलियां आ गई , पूरी डिबिया को अग्नि में स्वाहा होना ही प्रेम होगा । एक साथ सर्वस्व गया ।
एक एक तीली जली तो प्रेम नहीँ ।
जैसे कर्पूर जलता है , गति से , पागल पन से , ऐसा प्रेमी भीतर से स्वयं को जला ले । कर्पूर जलते समय भी शीतल होता है , यह जलना उसकी वृति ही है ।
बत्ती भी जलती है पर वह ज्ञान मार्ग की तरह विधि सहित ।
प्रेमी तो कर्पूर ही है जिसे भीतर से रोमांच हो स्वयं को जला डालने पर । मिलन की बेसर्बी हो ।
कर्पूर की अवस्था सहज नहीँ ,
स्व को तृप्त करना , स्व को जीना ही नहीँ हो रहा --- स्व हा , कहाँ हो । हाँ कहा बहुत जाता है स्वाहा , हुआ नहीँ जाता । कह कर तो हम बहुतों बार बहुत देवताओं के लिए स्वाहा हुये होंगे , पर भीतर को पता भी नहीँ उसे स्वाहा होना है , वह तो वस्तु के स्वाहा से ही सन्तुष्ट है , अतः देवता भी वस्तु से ही सन्तुष्ट करते है ,
अगर जीवन एक यज्ञ है तो स्वाहा होना प्रेम ।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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